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________________ (153) कारापिता। कृता च श्रीसौधर्मवृहत्तपागच्छाधिराज भट्टारक श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरशिष्य-भ० श्रीविजयधनचन्द्रसूरीश्वरैः / लियतीन्द्रविजयेन श्रीशुभं भवतु / " 145 कवलाँ___यह कवला नामक पहाडी के नीचे बसा हुआ है, यहाँ जैनों के 6 घर और एक पुराना जिन-मंदिर है, जिसमें श्रीसंभवनाथ की सफेदवर्ण की एक हाथ बडी मूर्ति बिराजमान है, जो खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरिजी की प्रतिष्टित है। इसके दोनों बगल में दो मूर्तियाँ हैं, जो सं० 1585 की प्रतिष्ठित हैं और बाह्यमंडप में दहिनी बाजू जो मूर्ति आदिनाथस्वामी की है उसकी प्रतिष्ठा सं० 1101 में हुई है / यहाँ के प्राचीन खंडेहरो के देखने से अनुमान किया जा सकता है कि पेस्तर इस नगर में जैन जैनेतरों की बहुत वसती (आबादी ) होगी / 146 रोडला यहाँ श्रोसवाल पोरवाडों के 12 घर, एक उपासग और उसके कमरे में ही श्रीआदिनाथ और पार्श्वनाथ की सफेदवर्ण की 16 अंगुल की प्रतिमाएँ स्थापित हैं, जो नवीन हैं। 147 तखतगढ यह कसबा एरनपुरारोड से 18 मील पश्चिमोत्तर हैं / इसको सं० 1618 में सेखमियाने बसाया था, फिर सस्कार की मदत से यह आबाद हो गया / यहाँ पोसवाल जैनों के 125, और पोरवाडजैनों के 460 घर हैं / निनमें सनातन स्तुतिक संप्रदाय
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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