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________________ (407) दिव्य पासे दिये / उन पासों में यह गुण था कि, जो उनको लेकर खेलता था; वह कभी नहीं हारता था। चाणक्यने वे पासे और स्वर्णमुद्रा का भरा हुआ एक थाल देकर, एक चूत क्रीडा कुशल पुरुष को नगर में भेजा / वह पुरुष चौराहे में जाकर बैठा और कहने लगा:-" हे लोगो ! जो कोई व्यक्ति मुझको जीतेगा उसको सोनामहोरों से भरा हुआ सारा थाल दे दूंगा; और जो मुझसे हार जायगा, मैं उससे केवल एक ही महोर लेऊँगा।" ऐसे सुनकर उसके साथ हजारों मनुष्य खेले / मगर कोई भी उसको न जीत सका। दिव्य पासों के प्रभावसे जैसे उसको हराना दुर्लभ था, वैसेही मनुष्य जन्म पाना भी अति दुर्लभ है। तीसरा धान्य का दृष्टान्त इस तरह है-“ संसार के सारी तरह के धान्य इकट्ठे कर उसमें एक पायली सरसों डाल उसको एक वृद्धाके पास दिया जाय और कहा जाय कि, तू प्रत्येक धान्य को जुदा कर दे तो उससे उस धान्य का जुदा होना कठिन है। इसी तरह मनुष्य जन्म पाना भी बहुत ही दुर्लभ है।" चौया चूत का दृष्टान्त इस तरह है:-" एक राजा का ऐसा सभामवन था कि जिसमें एकसौ आठ स्तंम थे / प्रत्येक स्तंम में एकसौ आठ हांस थे, राजा के एक पुत्र को राज्यगद्दी पर बैठने की अमिलाषा उत्पन्न हुई। मंत्रियों को यह बात ज्ञात हुई। रामाने
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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