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________________ (108) अपने सब पुत्रों और पोतों को जमा करके कहा कि,-जो राज लेना चाहे वह मेरे साथ जूआ खेले / जो मुझे जीतेगा वही राजा बनेगा। उसमें हारजीत की शर्त यह रहेगी कि,-लगा तार एकसौ और आठवार जीते पर वह एक स्तंभ जीतेगा। और यदि बीचमें एक भी वार राजा का दाव आगया; राजा जीत गया तो, उसकी पहिली जीत सब व्यर्थ होगी। इसतरह जो एकसौ आठ स्तंभ जीतेगा वही राज्य का मालिक होगा। राजभवन के एकसौ आठ स्तंम इस भाँति जीतना अतीव कठिन है / इसीतरह मनुष्य जन्म पाना भी अतीव कठिन है / पाजवाँ रत्न का दृष्टान्त इसतरह है, किसी सेठ के पास उसके पुरुषाओं का और स्वयं अपना किया हुआ रत्नसंग्रह था / वह कभी एक भी रस्न बाहिर नहीं निकालता था। एकवार वह देशान्तरों में व्यापार के लिए गया / उसके पुत्रोंने सोचा कि, पिता तो लोम के वश धन बाहिर नहीं निकालते हैं। घरमें कोटि स्वर्णमुद्राएँ हैं, तो भी अपने घरपर भी दूसरे कोटिध्वजों की तरह ध्वजा क्यों न फरानी चाहिए ? ऐसा सोच, उन्होंने विदेश से आये हुए किसी व्यापारीके हाथ अपने रत्न बेच दिये। वे कोटिध्वज बने / उनके घर भी ध्वजापताका उड़ने लगी / सेठ देशान्तर से वापिस आया। उसे रस्नों के बिकने की बात ज्ञात हुई / उसने अपने पुत्रों को बहुत नाराज होकर
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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