________________ हिन्दी बाल-शिक्षा (77) माया-बेल धनंजय दाह / लोभ-सलिलोषक-दिननाह // 8 // तुम गुनसागर अगम अपार / ग्यानजिहाज न पहुँचे पार // तट ही तट पर डोलत सोय ।स्वारथ सिद्ध तहां ही होय॥९॥ प्रभु तुम कीर्ति-बेल बहु बढ़ी / जतन विना जग-मंडप चढ़ी। और अदेव सुजस नित चहैं। ये अपने घर ही जसलहैं // 10 // जगतजीव घूमें विन ज्ञान / कीने मोह-महाविष-पान // तुम सेवा विष नाशन जरी। यह मुनिजन मिलि निहचै करी॥११ जन्म-लता मिश्यामत-मूल / जामन मरन लगै जिहि फूल // सो कब ही विन-भगति-कुठार / कटै नहीं दुख-फल दातार // 12 // कलपतरावर चित्राबेल / काम पोरसा नौनिधि मेल // चिंतामनि पारस पाषान / पुन्य पदारथ और महान // 13 // ये सब एक जनम संयोग / किंचित सुखदातार नियोग // त्रिभुवननाथ तुम्हारी सेव / जनम जनम सुखदायक देव // 14 // तुम जग-बान्धव तुम जगतात / असरनसरन-विरद-विख्यात॥ तुम जग जीवन के रछपाल / तुम दाता तुम परम दयाल // 15 // तुम पुनीत तुम पुरुष-पुरान / तुम समदरसी तुम सबजान॥ तुम जिन जग्यपुरुष परमेस / तुम ब्रह्मा तुम विष्णु महेस // 16 // तुम ही जगभरता जगजान / स्वामि स्वयंभू तुम अमलान // तुम विन तीन काल तिहुँलोय / नहिं नहिं सरन जीवको कोय॥१७ तिस कारन करुनानिधि नाथ / प्रभु सन्मुख जोरे हम हाथ॥ जब लो निकट होय निरवान / जगनिवास छूटै दुखदान // 18 // तब लो तुम चरनाम्बुज वास / हम उर होहु यही अरदास॥ और न कछु वांछा भगवान / यह दयाल दीजै वरदान॥१॥ *