________________ (78) सेठियाजेनप्रन्यमाला दोहा। जीति कर्मरिपु जे भये, केवल लब्धिनिवास / सो श्री पारसप्रभु सदा, करो विधन-धन नास // 20 // चार ज्ञान-- मति, श्रुत, अवधि, वाचाल-बहुत बोलने वाला,मुखर. मनःपर्यय ज्ञान. अनंत चतुष्टयवंत-अनंत ज्ञान, रतनकरंड- रत्नों का पिटारा. अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत शक्ति वाले. तरंड- नौका. समोसरन-भगवान की उपदेश सभा. तुसार- हिम, पास्ना. साज- सजाने वाले. धनजय- अग्नि. जरी (जड़ी)- बूटी. जन्मलता-संसार रूपी बेल. कल्पतरो (तरु) वर- उत्तम कल्प वृक्ष सबजान- सर्वज्ञ. विरद---. गुनगान जग्य (यज्ञ) पुरुष-पूज्य. अमलान- निर्दोष, चरनाम्बुज- पदकमल. अरदास -- प्रार्थना. केवललब्धि- केवलज्ञान रूपी लब्धि.