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________________ [34] सेठिया जैन ग्रन्थमाला ... की अपेक्षा ब्रह्मचर्य ही मनुष्य की ज्यादा; शोभा बढ़ाता है। 282 सोने चांदी और हीरा माणिक के आभूषण नष्ट हो जाते हैं, लेकिन शील-रूप आभूषण अखंड रहता है। वह स्त्री-पुरुषों कुमार.. कुमारिकाओं बुद्दों और जवानों, सभी को शोभा देता है। 283 जिस काम के करने पर पश्चात्ताप करना पड़े, उस के प्रारम्भ न करने में ही वास्तविक चतु- रता है। 284 किसी इष्ट या अनिष्ट नश्वर (नाश होने बाली) वस्तु का संयोग ही दुःख का कारण है, क्योंकि जहां संयोगवहां वियोग भी अवश्य होता है। 285 अभयपद प्राप्त करना हो, तो दूसरों को अभय . दो, इसी तरह सुख चाहते हो, तो सुख दो। 286 अगर किसी को सुखी न बना सको तो दुःख तो किसी को मत दो। 287 दूसरे का बुरा सोचना अपना बुरा करने के
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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