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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला 231 ज्ञान गर्व के लिए नहीं, किन्तु स्वपर का बोध करने के लिए है। 232 जिसकी तृष्णा विशाल है वह सदा दरिद्री रहता है और जिसे सन्तोष है वह सदा श्रीमान (धनवान्) है। 233 बुरे विचार करना विष पीने के बराबर है, अ. च्छे विचार करना अमृत पीने के बराबर है। 234 जो मन को जीत लेता है वह संसार को जीत लेता है। 5 जिसने काम को जीत लिया है, वह सब देवों ' का सरदार है। 236 ऐसाव्यसन-आदत-न डालो, जिससे शारीरिक .. और मानसिक स्वास्थ्य खराब हो। 237 गुणज्ञ पुरुष गुणों को ग्रहण करके गुणी, और दोषज्ञ पुरुष दोषों को ग्रहण करके दोषी बनते हैं। मृत्यु के साथ जिसकी मित्रता हो अथवा जो मृत्यु के पास से भाग कर छूट सकता हो, वह सुख से भले ही सोवे / 219 परिग्रह, परमधर्म रूप चंद्रमा के लिए राहु के समान है, इसलिए इससे विराम (विरक्तता)
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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