________________ [8] सेठिया जैन ग्रन्थमाला 78 प्रतिकूल वतीव करने वाले पर द्वेष न करना चाहिए। 79 खोटे हानि, खरे बरकत / अर्थात् अन्याय का पैसा जल्दी नष्ट हो जाता और न्याय से पैदा किया हुआ स्थाई रहता और बढ़ता है। 80 पाप से दुष्फल और धर्म से सुफल मिलता है। 81 जो झूठ न बोलकर सच बोले, उसे ही साहूकार समझना चाहिए। 82 जो अच्छी शिक्षा को भी बुरी माने वह हीन-पुण्य है। 83 जो क्षुद्रवचन न बोले, उसे गम्भीर मनुष्य समझना चाहिये। न्याय-पक्ष को स्वीकार करना चाहिए अन्याय पक्ष को नहीं। सुदेव सुगुरु और सुधर्म की विनय भक्ति करनी चाहिए। देव गुरु और धर्म की आसातनान करनी चाहिए। अपने से बड़ी दूसरे की स्त्री को माता के समान, और छोटी को बहिन भानजी के समान जाननी चाहिए।