________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (76) और स्पर्शन अर्थात् चमड़ा) पांच कर्मेन्द्रिय ( मुँह हाथ पाँव लिंग और गुदा) तथा पांच ज्ञानेन्द्रियों के पांच विषय (रूप रस गन्ध स्पर्श और शब्द ) इन पन्द्रह से मन को रोको / 78 जो मनुष्य मौके के अनुसार बात निकालता है, अपने अधिकार के अनुकूल प्रिय बचन बोलता है, और शक्ति के अनुसार कोप करता है, वह पण्डित है। ____76 एक ही वस्तु अधिकारी के भेद से अनेक प्रकार की नज़र भाती है। जैसे श्मशान में पड़ी हुई वेश्या को योगी लोग अत्यन्त बुरी और निन्दा के योग्य मुर्दा समझते हैं, तथा कामी लोग काम भोग के योग्य समझते हैं, और कुत्ता मांस समझता है / 80 बुद्धिमान् को चाहिये कि सिद्ध औषधि, धर्म (ईश्वरभक्ति दान आदि) घर का दोष, मैथुन, बुरे अन्न का भोजन, और अपने अपमान की बात किसी से न कहे / 81 धर्म,धन,धान्य,गुरु का वचन और औषधि, इन का ग्रहण यथार्थ रीति से करना चाहिए / यदि इन का ग्रहण योग्य गति से न करे तो बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। 82 हे मानव! दुर्जनों की संगति का त्याग कर और सज्जनों की सङ्गति कर, दिन रात पुण्य कर, और ईश्वर का नित्य भजन कर; क्योंकि यह संसार अनित्य है। 83 जिस का मन, दुःखी जीवों को देख कर दया से पिघल