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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (73) में तो यदि उदारता दानशीलता, सदाचार दीर्घदर्शिता, इन्द्रियदमन, इत्यादि गुण हों, तभी वे अंकुश में रह सकते हैं, नहीं तो उनका अधःपात हुए विना नहीं रहता। 46 आगे होने वाली कमाई की आशा से वर्तमान में अधिक खर्च करना मूर्खता है, लेकिन वर्तमान की कमाई को बचाकर भविष्य की कमाई से अपना खर्च चलाना बुद्धिमत्ता है। 47 हम को जो शक्ति मिली है, उस को किस तरह काम में लाना चाहिये, यह हमारी इच्छा पर निर्भर है / हमारे सामने शुभ और अशुभ दो मार्ग खुले हैं, इन में से एक मार्ग स्वर्ग और एक नरक में पहुँचाने वाला है, जो मार्ग आत्मा के लिए सुखदायी हो उसे ग्रहण करना चाहिए। - 48 ऐ बुद्धिमान् ! जो कुछ कार्य करना है, उसे आज ही कर ले, कल न जाने क्या होगा, इसे कौन जानता ? हे चतुर ! आने वाले कल पर भरोसा न कर, करने योग्य कार्यों को भाज और अभी कर ले, बीच में रात पड़ी है, कौन जाने क्या होगा? / 46 देवता सत्पुरुष और पिता, ये प्रकृति से ही सन्तुष्ट होते हैं, परन्तु बन्धु लोग खान-पान से और पण्डित लोग प्रिय वचन से सन्तुष्ट होते हैं / 50 अहो! महान् पुरुषों का विचित्र चारित्र है, वे लक्ष्मी को तृण समान समझते हैं, यदि वह मिल जाती है, तो उस के भार से नम्र हो जाते हैं। __51 जिस मनुष्य को किसी पर स्नेह होता है, उसी को भय होता है; क्योंकि स्नेह ही दुःख का भाजन है-स्नेह ही सब दुःख
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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