________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (11) m 41 अधम मनुष्य धन ही चाहते हैं, मध्यम धन और मान चाहते हैं / उत्तम मान ही चाहते हैं, क्योंकि महापुरुषों का धन मान ही है। 42 जैसा अन्न खाया जाता है वैसी ही बुद्धि होती है, जैसे दीपक अंधेरे को खाता है और काजल को उत्पन्न करता हैं / 43 बुद्धिमानों को चाहिए कि गुणियों को ही धन दें, दूसरों को नहीं / जैसे समुद्र का खारा जल मेघ के मुंह में जाकर मीठा हो जाता है, और वही जल पृथिवी पर चर अचर सब जीवों को जिलाता हुमा कोटिगुणा होकर फिर समुद में चला जाता है / 44 अजीर्ण (अपच) में जल पीना औषध है,पच जाने पर जल बलवर्द्धक है, भोजन करते समय जल अमृत के समान है और भोजन के अन्त में विष के सदृश है / 45 क्रिया विना ज्ञान निरर्थक है, अज्ञान से मनुष्य दुःख पाता है, सेनापति विना सेना मारी जाती है, और स्वामी हीन स्त्रिया नष्ट हो जाती हैं। 46 बुढ़ापे में स्त्रीका मरना, बन्धुओं के हाथ में धन का जाना, और दूसरे के आधीन भोजन,ये तीनों बातें पुरुषों को दुःख देनेवाली हैं। 47 देव, न काठ में न पाषाण में और न मिट्टीकी बनी मूर्ति में है। निश्चय नय से आत्माका शुद्धभाव ही देव है, इसलिए भाव ही