________________ नीति-शिक्षा-संग्रह शुभ कर्म करके दिवस को सार्थक बनाना चाहिए। 52 स्त्री का वियोग, अपने सम्बन्धियों से अनादर, युद्ध से बचा शत्रु, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता, अविवेकियों की सभा, ये बिना आग ही शरीर को जलाते हैं / 53 नदी तीर के वृक्ष, दूसरे के घर में जाने वाली स्त्री, मन्त्री रहित राजा, ये निःसन्देह शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। 54 ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजों का बल सेना तथा वैश्यों का बल धन है और शूद्रों का बल सेवा है। 55 वेश्या धनहीन पुरुष को, प्रजा शक्ति हीन राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अभ्यागत भोजन करके घर को छोड़ देते हैं। 56 जैसे जले हुए बन को मृग छोड़ देते हैं / वैसे ही ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को त्याग देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्त हो जाने पर गुरु को छोड़ देते हैं। 57 जिस का आचरण बुरा है, जिस की दृष्टि पाप में रहती है, जो बुरे स्थान में वसनेवाला है और जो दुर्जन है, इन पुरुषों के साथ जो मित्रता करता है, उसका शीघ्र ही नाश होता है। 58 समान जन में प्रीति शोभती है, सेवा राजा की शोभती है, व्यवहार में बनियाई और घर में सुन्दर स्त्री शोभती है।