________________ (30) सेठियाजैनग्रंथमाला सावधानी और प्रेम तुम अपनी आत्मा की उन्नति के लिए भी नहीं रखते, यह कितनी शर्म की बात है / (११)विषयलम्पटी तथा व्यसनी मनुष्य पशु से भी नीच / है / शरीर का दुरुपयोग तथा अति उपयोग करने से उसे माधिव्याधि घेर लेती है, तथा असह्य यातना भोगनी पड़ती है / इस में किस का दोष ? यह सब दोष उसी विषय-लम्पटी का है। (१२)सन्तोषी और शान्त मनुष्य का शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है, असन्तोषी और क्रोधी मनुष्य का शरीर सूखी लकड़ी के समान निःसत्व होता है; क्योंकि चिन्तातुर ईर्षालु और असंतोषी का मन सदा जलता रहता है इसलिए उसके शरीर में रुधिर नहीं बढ़ता / (१३)छोटे२ बालकों को चुप करने के लिए कई माताएँ वह हौवा आया! वह हाबु आयावह खाऊ आया! इत्यादि कहकर डराती हैं; लेकिन उन माताओं को इस पर ध्यान देना चाहिए कि इस तरह डराने से बालक हमेशा के लिए डरपोक बन जाते हैं, इतना ही नहीं, कभी 2 इस का परिणाम भयंकर हो जाता है / (14) अक्सर बीमारियों का मूल कारण अजीर्ण होता है / हमेशा पाचन-शक्ति से अधिक तथा गरिष्ठ माहार करने से अनेक रोगों का बीज बोया जाता है / अल्प तथा सात्विक आहार करने से शरीर हलका और फुर्तीला रहता है / मन में स्फूर्ति रहती है। अधिक तथा गरिष्ठ आहार करने से शरीर भारी हो