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________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (103) 6. यदि किसी ने आपसे कोई बात गुप्त रखने के लिये कहा हो तो उमे गुप्त ही रखो और भूनकर भी किसी पर प्रकट न करो! : 100 यदि आपने किसी की कहीं पर निन्दा सुनी हो तो उस निन्दा जनक बात को उसे एकान्त में कहो----- लोगों के सामने कदापि भूलकर भी मत कहो। 101 जब किसी का नाम उच्चारण करो, तब उसके पहले श्रीयुत्,श्रीमान, पंडित, सेठ जी, महाशय, बाबू, महानुभाव, मित्र, बन्धु, महोदय, आदि यथायोग्य शब्द लगाना चाहिये और नाम के पन्त में 'जी' शब्द का प्रयोग करना चाहिये। . 102 अशुभ, अभद्र, और अधम, विचारों को मन से निकाल फेंकिये / ये ही मनुष्य को असभ्य और अधम बनाते हैं। , 103 सर्वदा मन में शुभ विचार, बाणी में शुभ उचार और आत्मा में शुभ प्राचार को धारण कगे / ये तीन बातें ही केवल ऐसी हैं, जो मनुष्य के सभ्य और योग्य बनाती हैं / 104 रेलवे, पोस्टाफिम, जगात आदि के नियमों से विरुद्ध काम करना चोरी समझी जाती है ; इसलिए आप को रेलवे आदि के नियम विरुद्ध कोई काम नहीं करना चाहिये। 105 मुसाफिरखानों, सरायो, धर्मशालाओं तथा ऐसे ही दूसरे सार्वजनिक स्थानों को किसी तरह भी मैला और खराब मत करो। यदि कोई दूसरा करता हो तो उसे नम्रता पूर्वक समझाकर रोकदो /
SR No.023531
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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