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(३२) आर्द्रकुमारनी भ्रष्टता ए सर्व कर्मना वशथीज थयां छे कई छे के"ब्रह्मदत्तनो दृष्टिनो (नेत्रनो) नाश थयो, भरतचक्रीनो पराजय थयो, कृष्णना समग्र कुटुंबनो नाश थयो, छल्ला तीर्थ करना नीचे गोत्रमा अ. वतार थयो, मल्लीनाथने स्त्रीपणुं प्राप्त थयु. नारदर्नु पण निर्वाण ( मोक्ष ) थयु, अने विलातीपुत्रने प्रशमना परिणाम थया. आ तमाम बावतोमां कमे अने उद्यम ए बन्ने स्पर्धाए करीने तुल्य बळवाळा छता आ जगत्मां प्रगट रीते जयवंता वर्ते छे. " ____ आ प्रमाणे गुरुना मुखथी कर्म अने उद्यमनी समानता सांभळीने धर्ममा उद्यम करवानी बुद्धि जेने उत्पन्न थइ छ एवो चंद्र राजा दुष्ट कोने हणवा माटे तैयार थयो, पछी ते राजाए विधिपूर्वक पोताना जमाई पृथ्वीपालने पोतानुं राज्य सोपीने मोटी पुत्री तथा बन्ने राणीओसहित दीक्षा ग्रहण करी अने तेनुं आराधन करीने भति मोक्षे गयो.
'त्यार पछी पृथ्वीपाळ राजा चंद्रराजाना राज्यने स्वस्थ कराने इंद्रनी जेम मोटी ऋदिसहित पातानी स्त्रीने लइने पोताना नगरमां गयो. आ प्रमाणे पेला श्लोकना चोथा पादनी परीक्षा करवायी पृथ्वीपाल राजा शास्त्रोने विषे अत्यंत बहुमानवाळो थयो. अज्ञाननो नाश करवामां अस्त्रसमान शास्त्रोनुं आदरसहित श्रवण करतां ते राजानी बुद्धि धर्मर्नु आराधन करवामां तत्पर थइ. केमके ज्ञानथी शुं न संभवे ? सर्व संभवे. सर्व दर्शनीओना धर्मोने जोइ जोइने सारा रीते परीक्षा करवाथी जेना समान बीजो कोइ धर्म नथी एवा आईत