________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
॥ ४३ ॥
सेवा
(410277
हविपु
नियलविलीणविलीणारी सहि, मणिमयनेउरपाएहिं दीसहिं । पहिरिय पंचरंगपडिकप्पड पट्टहीर नवरंगमहुब्भड ॥ ७५ ॥ मरगयमाणविहिं मोतियचक्किहिं, पउमरायविद्दमदलिहिं । समलंकियभूसण अवगयदूसण, पहिरिय अंगिहिं उज्जलिहिं ॥ ७६ ॥ सिंधुरखंधराहिं आरूढउ, राउ सयाणिउ नीइ अमूढउ । देवि मिगावइ सहि संपत्तड, रायत्थाण जणोवि पहुत्तउ ॥ ७७ ॥ तहिं अन्नेवित्त तंबोलिय - सालिय- हालिय-नालिय-मालिय । जोहारेविणु विहुणियमाऊ, चंदणबाल सिराहइ राऊ ॥ ७८ ॥ सुंदरि सुंदरु जम्मु तुहारउ, नामुक्त्तिणु तुह गुणकारउ । तुहुपरि तियसिहि तसु सलहिज्जर, जगधवलहरु जेण धवलिज्जइ ॥ ७९ ॥ परं पाराविड वीरजिणेसरु, अन्नहि कवि न एत्तिउ गुणभरु। किं मायंगह घरि करि बज्झइ, रंकह कामधेणु किं दुज्झइ ||८०|| एवहिं पई खालिउ महिलह टालिउ थीकलंकु नहु संघडइ । चंदणह महामइ देवि मिगावइ इय भणेवि पाइहिं पडइ ॥ ८१ ॥ निवु वसुहारहिं सत्तण लग्गड, तउ सकेण निरक्खिउ थक्कउ । धणु जसु कासुवि चंदण अप्पर, लहइसु एत्थु न अन्नु पहुप्पइ ॥ ८२ ॥ ताउ धणावहु सो धणसामिङ, तेण तीए तसु चैव पणामिउ । नरनाहेण वि तसु अणुजाणिङ, घरभर पराणिउ || ८३ || संपुल (ण्णु) नामि महल्लउ आसी, आविउ देवि मिगावइ पासी । चंदणबाल तत्थ सो पेक्खिवि, पायपडिउ रोयइ | ॥ ८४ ॥ कइ मिगावइ भणिउसु तक्खणि, एह रायदहिवाहणनंदणि वसुमइ त्ति निरधारिणि जाई, जाणिउं चंपा - हि इहाई ||८५|| तो देवि नियंती भणइ रुयंती भाइणिज्जि तुहं होसि महु । वच्छे ! आलिंगसु मई निव्वावसु इय आलिंगइ सा सुबहु || ८६ ॥ कयजोहारु रायउ सुरराई, भणिउ निसुणि मह सासणु काई । बाल नेहि नियगेहि नरेसर ! पार्लाहि केवि मास हरि ॥ ८७ ॥ वीरह नाणि जाइ उक्कोसइ, सिस्सिणि पढमपवत्तिणि होसइ । करिहिं चडाविउ चंदण तक्खणि, नीय नरेसरि नियमंदिरि खाणी ॥ ८८ ॥ गयउ सक्कु धवलहरि धरेविणु, चंदण देवदूसवर देविणु । कन्नंतेउरमज्झि रमंती, अच्छइ जिणकेवल पडिखंती ॥ ८९ ॥ गामागरनगरिहिं विहरंतर, जंभियगामि सामि संपत्तउ । उजुवालियनइतीरि जु सालू, तसु तलि ठिउ तवछट्ट विसाल ॥ ९० ॥ अह वरिसि दुवालसि गयइ अणालसि छहिं मासिहिं पक्खम्गलिहिं । सियद्समिविसा
Xne
चंदनबाला
पारणा
सन्धिः ।
पंजाग
॥ ४३ ॥