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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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पीडयेल
Partic
आयरेण, नहु कहइ कोइ मूला भएण ॥ ५९ ॥ चिंतेइ सवाणि सहियपासि, निरु रमइ, कहिवि सा गुणहरासि । अह कहवि पत्तु वासरु उत्थु, तो जाउ सेट्ठि कोविण विहत्थु ॥ ६० ॥ आबालहिं बालाहिं तउ गुणमालहिं थेरदासि धरिम धरिवि । मूला दुचिट्ठिउ कहइ जह ठिउ मरणि जाव अंगीकरिवि ॥ ६१ ॥ तौ मणि दुक्खड धणु अइयारि, हणिउ किं मोग्गरगाढपहारिं । अइवेगिं गउ चारग (दु)वारिं, तालं अप्फालेइ कुठारिं ॥ ६२ ॥ नियकरकमलि कओलु वहती, दुलहुबाल दिट्ठ रोयंती । तिदिवस निरसण भुक्खह भुली, करि उम्मूलिय कमलिणि तुली ।। ६३ ।। छुहियबाल तउ भोयणु चाहई, मूला थवियउं किंपि न पावइ । दिट्ठ कवि कुम्मासति लेविणु, अप्पिय सुप्पह कोणि क (ध) रेविणु ॥ ६४ ॥ धणु गउ नियलुग्घाडणकारणि, कारु हु कस्सइ सई हक्कारणि । चंदण ते कुम्मास पलोयइ, पेइयहरु सुमरे विणु रोयइ ॥ ६५ ॥ नहु तारिसु विज्जइ अतिहि जं दिज्जइ तिहिं उववासहं पारणइ । जइ तहवि अवत्थहिं पावडे दुच्छहिं तो पाराव कोवि जइ ॥ ६६ ॥ एत्थंतरि तित्थेसरु पत्त चंदणपुन्निहिं पेल्लिज्जंतउ । तरणि तिव्वतवतेयविराइड, कंचणु चित्तभाणु नं ताविउ ॥ ६७ ॥ जंगमु कप्परुक्खु किं आयउ, सुरगिरि अवरु एत्थु किं जायउ । कुसुमबाणु किं दिक्खसमिद्धउ, विहरइ अहव धम्मुतणु वद्धउ ॥ ६८ ॥ सौ परमेसरु पेक्खिवि चिंतइ, अरिरि अतिहि मई पाविउ संपइ । कटरे मह पुन्नह परिवाडी, पूरी अतिहि तणी राहाडी ।। ६९ ।। उट्ठिय पिक्खिवि पहु घरि आऊ, उंबर बाहिरि मेल्लइ पाऊ । भणइ सवाहपवाह सुभासहि, पारहि पहु तुहुं इय कुम्मासहिं ॥ ७० ॥ प एउ सुविणु नियम सरेविणु दव्वाईहिं महग्घविउ । नियपाणि पसारइ अंजलि धारइ सा विहरावर सुप्पिकिउ ॥ ७१ ॥ पारगामिपारणयमहूसवि, सपरिवारि संपत्तइ वासवि । बाहिं देवदुंदुहि आणंदिय, वरिसहिं कुसुमसमूहसुगंधिय ।। ७२ ।। रयण कणयकंकणमणिहारा, वरिसहिं तक्खणि ते वसुहारा । घरिघरि तोरणवंदुरवालिहिं, किज्जहिं चेलुक्खेव कवालिहिं ॥ ७३ ॥ बपुरि सुदाणु सुदाणुग्घोसहिं, नश्चिरसुरसमूहजणु तोसहिं । सिरि सिररुहभरुवालह जाऊ, सरल तरलु नं मोरकलाऊ ॥ ७४ ॥ २ ढुलहुल D ३ मूला य विनु किंपि नवि पावइ D
अतिवेगडे.
चंदनबाला
पारणासन्धिः ।
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