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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
॥ ४० ॥
हिमंत
निरसणु सामि तेण दुहतत्ती, तज्जइ रहसि राउ रोयंती । सामिहि नियमु कोइ नहु नज्जइ, घरिघरि जाइवि झत्ति नियत्तइ ॥ २९ ॥ तापिय ! तुझ रज्जि किं किज्जइ, किं विन्नाणि जाणि साहिज्जइ । जाव न सामि अभिग्गहु जाणिउ, आलु ताव तुहं राउ सयाणिउ ॥ ३० ॥ इय वयणु सुणेविणु नरवइ दुम्मणु, हक्कारावइ जइ सुसंजम । बंदिवि ते पुच्छर साहु सुनिच्छ, परमतवसिहि जे नियमं ॥ ३१ ॥ दव्वखित्तकालिहिं अरु भावि, कहिय अभिम्गह तेहि सभाविं । राइ कहाविय तो पुरनारिहिं, जिणु विहराव विविपयारिहिं ॥ ३२ ॥ कावि नारि मंगल गायंती, मोयग देइ नियंगु नियंती । कंसपत्ती कुम्मास वहंती, अवर विमुक्ककेस रोयंती ॥ ३३ ॥ कावि हु पाइहि 'दावणि दाविय, वियरइ वासिउ भावणभाविय । अवरकरणचारी संचारहि, नव्वर खीर देइ सहुं वारिहिं ॥ ३४ ॥ आसवारु कुंतग्गिकरेविणु, 'मंडा कोवि देइ पणमेविणु । तहवि न सामिउ पाणि पसारइ वलिवि जाइ नियनियमु न हारइ ।। ३५ ।। तर देवि सयाणिउ सेट्ठि सवाणिउ, सत्थवाहु सव्वो वि जणु । अइदुक्खावडियउ चिंता चडियउ, अच्छइ निच्चु ससोगमणु ॥ ३६ ॥ इओय - राउ सयाणिउ धाडिहिं धाविउ, नाssवासइ निसि पहि आविउ । निययसेन्निजऽग्गहु घोसावइ, लुंटहि लोय जासु जं भावइ ॥ ३७ ॥ एक्कि अंगि दहिवाहणु नटुङ, हरि करि कंसु कोसु सउ मुट्ठउ । पाविय पाइकि धारिणिराणी, अनुतसु वसुमइ घूय सियाणी ।। ३८ ।। कोसंबिहि सो पुरिसु उवेई, मह पाणप्पिय होसु भई । धारिणी 3 सीलकलंकु कलंती, हियडडं फुट्टिवि परभवि पत्ती ॥ ३९ ॥ पाइकु पच्छुतावु करंतउ, मरिसइ एहइ एउ सुतउ | महुरमहुरत्रयणिहिं संभासइ, जिव गयसोगबाला सा भास ॥ ४० ॥ अणुणितउ सारिहिं विविपयारिहिं कोसंबिहिं सो पत्तु नरु । पणवीहिहि उड्डड्इ सिरि तिणु अड्डइ जिव पावइ परु दव्वभरु ॥ ४१ ॥ अह तत्थ धणावहिं दिट्ठ सेट्ठि, सा नाइ कुसुमसरचावलट्ठि । सुकुमारगोरपत्तलसुदेह, ४नं चलिर सुवन्नसुवन्नरेह ॥ ४२ ॥ पेक्खिवि सिट्ठि तं तत्थ पत्तु, जिव धूयहि तिवु धारइ ममत्तु । उल्लविय मोल्लि सा लइय तेण, नं पेल्लिउ तसु पुन्नोदएण ॥ ४३ ॥ नियभवणिनिय सा
१ वा D | २ मुंडा B। ३ सीलु हियइए D | ४ नं इवार्थे । ५ सोत्त सा लेइ DI
चंदनबालापारणा
सन्धिः ।
सैनिर्ड
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