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उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः
॥ २१ ॥ पुनः
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मंतेहिं सुत्तिओ चित्तविदेसो ॥ ३१४ ॥ कमलवई कुमराणं समक्खमक्खियमिमं तओ एसा । समुहेणं तीए अवणीयलंछणा निव्वुया जाया ।। ३१५ ।। रणसीहो सोऊणं उब्भडभिउडी - विडंकियनिडालो । रयणवई निब्भच्छर हच्छं रत्तच्छि दुप्पेच्छो ॥ ३१६ ॥ आ पावे पावमिणं कुणमाणीए तए विसंकाए । खित्तो दुहन्नवेऽहं अप्पा नरयंधकूबंमि ॥ ३१७ ॥
“ कुकुरकेरीघरणि साहु साहुल पोक्कारइ, अनउ नारि जं जणु गणेइ वइसणइ महारइ | आगच्छ इ कोवि' किंपि जइ देइ तसुवि कुकुरी न भुक्कइ, दाणु माणु दितह वि महिल पुणु मारण सुकइ || ३१८ ॥ " जाही
जमलियकलंकपंकेण धाडिया पाडिया दुहचियाए । कमलवई कमलच्छी, हाहा पंचत्तमणुपत्ता ॥ ३१९ ।। रे रे काहार रा age अविलंबमेव कट्ठाई । धवलहरस्स दुबारे चियं सुसंचं पचेह ॥ ३२० ॥ जा नऽज्जवि कमलवई दुहदहणाडंबरेण उज्झामि । जालाजालजडाले चियाऽनले ताव सुज्झामि ॥ ३२१ ॥ कहकहनि चियाए संचियाए चिंताउरेहिं तेहिं तहिं । चलिओ चडिस परियरेण पडिसिज्झमाणो वि ॥ ३२२ ॥ इय सुणिय निवेणुत्ते धिद्धी एयाए कवडभरियाए । नरयगइ गामिणीए निंदिय अविसिसिट्टाए || ३२३ || एवंपि वयमिमीए सिरंमि निवडउ अणज्जकज्जाए । अलियकलंककयं पुण इहईपि हु मत्थए पडिअं || ३२४|| एवं खिसिज्जंती पुरलोएण पए पए पावा । लुयपुच्छकन्नधूसरखरपिट्ठारोविया काॐ ॥ ३२५ ॥ विगोविऊण नयरे रन्ना निव्वासिया परिव्वाया । नारीजणो अवज्झो त्ति तेण जीवंतिया मुक्का ॥ ३२६ ॥ कुमरो वि मंतिसत्थाहसाहुपमुहेहिं पुरपहाणेहिं । वारंवारं वारिज्जमाणमरणेक्कताणो वि ।। ३२७ ॥ लज्जतेणं पुरिसुत्तमेण पडिरुज्झमाणमग्गोवि । तंमि पएसे पत्तो मिलियाखिललोयलक्खंमि ॥ ३२८ ॥ तत्तो हाहारववाउलाणणे नरवईमि नयरजणे । मच्चुसुनिञ्चलचित्तो चित्तं चडिओ चियाए सो ॥ ३२९ ॥ सियवत्थविलेवणकुसुमदामलंकारसेयमुत्ति वि । रणसीहो कमलवईअणुराएणं दढं रत्तो ॥ ३३० ॥ तव्वयणाउ हुयासो जाकिर पउ
१ विह्नि B २ बुD |
रणसिंहकथा
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॥ २१ ॥