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उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः
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लिव्व ॥ ४४ ॥ देवं वंदिय जा जाइ, ताव सीहेण पुरिससीहेण । अभिवंदिआ निरिक्खइ, खोणीवइलक्खणाई से ॥ ४५ ॥ आसीऊिण मुणिणा, पारद्धा धम्मदेसणा तस्स । सिररइयकरंजलिसपुडस्स पुरओ निसन्नस्स ॥ ४६ ॥ गडयडंतउब्भडभिडंतकुंजरघडमंडिओ । तरलतिक्खपक्खरियचोक्खतुक्खारअखंडिओ ॥ ४७ ॥ नवविज्जुलझलकंत अंतेउरजुत्तओ । धम्मि रम्मि निरवज्जुरज्जुजणि होइ निरुत्तओ ।। ४८ ।। सोहगउवरिमंजरिसरिसु मग्गइ सग्गहरज्जु कुवि । बहु सूया सत्तरि कहउं, चिंतइ तं लहइ सुवि ॥ ४९ ॥ धम्मु सुछु सो सालिभद्दि जिव दाणि निबज्झइ । पालितह सीलंगसहस साहु हु पुण सिज्झइ ॥ ५० ॥ निसियं तिक्खतखारि-तिब्व तव हणइ आयत्तओ । अरुतरुसाहइ भावसारु भावण भाविंतओ ॥ ५१ ॥ जो दाणसी लतव भावणहिं, धरिओ न सक्कइ धम्मधुरु । पालउ सुकोवि एक्कुवि, नियमु को न देइ साहिज्जु सुरु ।। ५२ ।। खाहिं न मेलवि तिन्नि, तिन्नि मेलेविन पहिरहिं । बहूयलोयपुर अडवि अडहिं, निवदुक्खिअ जूरहिं ॥ ५३॥ घणकंटयकक्कर - करालि थंडिलि सुत्तानिसिगे वहिं । भवहिं अरु भिक्खदिक्ख वज्जिय जिव महरिसि || १४ || एत्तियह मज्झि एक्कुवि, सुपरि नियमबुद्धि' जे पुणु करहिं । ते दुक्खलक्खखंडेवि, खणि हियइच्छिओ निच्छई वरहिं ॥ ५५ ॥ अह देसणाऽवसाणे, भणिओ सो वच्छ निच्छएणित्थ । दिवस - मेस सो आह, नाह! नहु ७ इत्तियं सुकयं ॥ ५६ ॥ न य वंदणाविहाणं, सुकयनिहाणं जिणस्स जाणामि । भणियं मुणिणा जिणभत्ति निच्छओ इच्छयं देइ ॥ ५७ ॥ जइवि न वंदणवित्थारपारगो तहवि खंडपिंडीवि । दाऊण देवदेवस्स सम्बद्दा भुंजसु सावि ॥ ५८ ॥ एतो अभिग्गहाओ निरवज्जपालिआओ होंहिंति । तुह आसवल्लरीओ, फुल्लियफलियाओ सयराहं ।। ५९ ।। एयमभिग्गहमंगीकरेत्तु तेणाऽभिवंदिया मुणिणा । गयणंगणमलीणा, सोषि गओ निययखेत्तंमि ॥ ६० ॥ नियनियमं निस्सीमं, पालइ पइवासरंपि ढोएइ । परमेसरस्स पुरओ, कूरकरंबाइ नेवज्जं ॥ ६१ ॥ चिंतामणिजक्खेणं, परिक्खिउं देवमंडवदुवारे । तस्साभिम्गभंगाय, दंसिओ केसरिकिसोरो ॥ ६२ ॥ खरनहरसिहचरणग्ग-उग्ग सज्जियतलफ उप्फालो । कयनिब्भरगुंजारो, अइकुडिलक
१ जहिणि B। २ य BD ३ गD ४ सिरक D ५ अ । ६ बुद्धि । ७ ए० ।
रणसिंहकथा
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