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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥४२७॥
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कुणइ ॥२२॥ संवेगमसंविग्गाण, जणइ इह सुविहिओ सुविहियाणं । अथिरमणाणं पुण संजणेइ धम्ममि थिरकरणं ॥ २३ ॥ संविग्गयरे पासिय, पियधम्मयरे य ऽवजमीरु य । सयमवि पियथिरधम्मो, पायं विहरंतओ होइ ॥ २४ ॥ चरिया छुहा य INशेलकाचार्यतिण्हा, सीयं उण्हं च भावियं होइ । अहियासिया य सेज्जा, सम्म अणिययविहारेण ॥ २५ ॥ सुत्तत्थथिरीकरणं, अइसइयत्थाण ४पन्यकशिष्यो होइ उवलंभो। अइसइयसुयहराणं, पलोयणे विहरमाणस्स ॥ २६ ॥ निक्खमणपवेसाइसु, आयरियाणं बहुप्पयाराणं । सामायारी
दाहरणम् । कुसलो, जायइ गणसंपवेसेण ॥ २७ ॥ साहूण सुहविहारो, निरवजो जत्थ सुलहवित्ती य । तं खेत्तं परियाणइ, अनिययचरियाए विहरंतो ।। २८ ॥ तणुतणुबलोऽवि ता भो, विहरामि न परिहरामि नियसत्तं । इय अंतपंतभत्ताइएहिं जाओ गिलाणो सो ॥२९।। जइवि हु गहिओ रोगेहि, तहवि सत्ताहिओ त्ति विहरंतो । सेलगपुरे पहुत्तो, समोसढो मिगवणुज्जाणे ।। ३० ॥ पिउपडिबंधेण य मडु(दु)गो निवो वंदणदुमणुपत्तो। सोऊण य धम्मकहं, पडिबुद्धो सावगो जाओ ॥३१॥ अह दटुं सो सूरिं, सरोगमच्चततणुसरीरं च। जंपेइ अहं भंते !, अहापवत्तेण तेगिच्छं ॥ ३२॥ करेमि तुम्ह एसणियभत्तपाणोसहाइएणंति । पडिसुणियं मुणिवइणा, कराविया तयणु से किरिया ॥ ३३ ॥ अह पगुणीभूयतणू वि, पबलरसगारवाइपडिबद्धो। सूरी मुणिगणविमुहो, तत्थेव य ठाउ- IN मारद्धो ॥ ३४ ॥ पंथगवजेहिं तओ, परिचत्तो सेसएहिं साहूहिं । अह चउमासगरयणीए, निब्भरं सुहपसुत्तो सो ॥ ३५॥ चउमासियाइयारं, खामेउं पंथगेण सीसेणं । छिक्को चलगेसु तओ, झत्ति विउद्घो भणइ कुद्धो ॥ ३६ ॥ को एस दुरायारो, में पाएसुं 10 सिरेण घट्टेइ । तेणं भणियं भंते !, पंथगनामो अहं साहू ॥ ३७ ।। खामेमि चउम्मासिगमेकसि खमेह न पुणो इमं काहं। अह संवेगोवगओ, सूरी इय भणिउमारद्धो ॥ ३८ ॥ रसगारवाइविसविहयचेयणो सुठु बोहिओ तुमए । पंथय! ता कयमेत्तो, एत्थावत्थाण सोक्खेण ॥ ३९ ॥ अह विहरिउमारद्धो, स महप्पा अणियाए चरियाए । विहरतो परियरिओ, पुणरवि पोराणसीसेहि ॥ ४० ॥ कालंतरेण निधुणिय-रयमलो मलियदलियमोहबलो । सेत्तुंजपव्वयंमि, निव्वाणमणुत्तरं पत्तो ॥ ४१ ॥ २४६ ॥ ननु कथमागमज्ञोऽपि शेलकः शिथिलतामगमत् , उच्यते कर्मवैचित्र्यात् । तद्धि जानतामपि जन्तूनां महतेऽनर्थाय यत आह-INI
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सेणं । CिT सेसएहिं साहूहि । असगारवाइपडिबद्धो । हाइएणति । पडिसनरागमञ्चंततणु