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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
॥ ३९२॥
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जो अविकलं तवं संजमं च साहू करिज पच्छाऽवि । अनियसुय व्व सो नियगमट्ठमचिरेण साहेइ ॥ १७१ ॥
10 अनिकापुत्रा- अनिकासुताचार्यकथा पुनरियम्-महुराहि उत्तराए, वाणियगो कोवि दाहिणाए गओ। ववहारेणं केणावि, तत्थ वणिणा कओ |
चार्यकथा । मित्तो ॥१॥ सगिहे निमंतिओ भोयणाय भुजंतएण तब्भइणी । वीयणपाणी तेणं, निरिक्खिया अन्निया नाम ||२|| अणुरत्तमत्तचित्तण, सुबहु सा मग्गिऊण परिणीया । सासुराए भाया पुण, तं मेल्लइ नेव नेहाओ॥३॥ विहिए निबंधे भावुगेण तब्भाउणा भणियमेयं । भयणि मेलिस्सं पुण, पलोइए भाइणेज्जमुहे ॥४॥ तस्स कयाइ चिराओ, पत्तो पिअराण माउरो लेहो। जइ पुत्त ! कयन्नू ता, मिलेसु जीवंतयाणऽम्ह ॥५॥ समयन्नुयाए तो अन्नियाए नियबंधवो तहा भणिओ। वेलामासे वि जहा, मुक्का नियभत्तुणा सद्धिं ।।६।। अंतरपहे पसूया, पुत्तो जाओ न से कयं नामं । ठाणे ठियाई महया, काहामो ऊसवेणंति ॥७॥ अन्नियपुत्तो त्ति तओ, सयलजणो भणइ तं रमावितो । एयं चिय अभिहाणं, गयं पसिद्धिं तओ तस्स ||८|| अहुणा दिन्नं अन्नंपि, नूण नाम इमस्स नहु ठाही । तत्तो तत्थ वि पत्तेहिं, तेहिं विहियं तयं चेव ॥९।। वुडिंढ पत्तो पाविय-पव्वजं अहिगयाऽऽगमरहस्सो। लध्धूणायरियपयं, कुणमाणोsणिस्सियविहारं ॥१०॥ नियसयलपरिवारेण, परिगओ आगओ कयाइ तओ। नयरंमि पुप्फदंते, कहियमओ णंतरकहाए ॥ ११ ॥ इति पुष्पचूलाअन्निकापुत्राचार्यकथा ॥ १७१ ॥ 'आर्ता नरा धर्मपरा भवन्तीति यो मन्येत तं प्रत्याहसुहिओ न चयइ भोए, चयइ जहा दुक्खिो त्ति अलियमिणं । चिक्कणकम्मोलित्तो, न इमो न इमो परिचयई ॥ १७२॥ 10 जह चयइ चकवट्टी, पवित्थरं तत्तियं मुहुत्तेणं । न चयइ तहा अहन्नो, दुब्बुद्धी खप्परं दमओ ॥ १७३ ॥ देहो पिपीलियाहिं, चिलाइपुत्तस्स चालणी व्व को । तणुओ वि मणपोसो, न चालिओ तेण ताणुवरि ॥ १७४ ॥
॥३९२॥ पाणच्चएऽवि पावं, पिवीलियाएऽवि जे न इच्छंति । ते कह जई अपावा, पावाइँ करंति अन्नस्स ? ॥ १७५ ॥ जिणपहअपंडियाण, पाणहराणंऽपि पहरमाणाणं । न करंति य पावाई, पावस्स फलं वियाणंता ॥ १७६ ॥
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