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हीए ॥ ७ ॥ अंगाराम विधाई । गोसे पहिस्सागात जपतो ॥ १० ॥ खास स गुरु कोलो ।
जेसु लाई स्व जिणेहि ह ॥ १९ ॥ माता विजय मावखकेविण सगाओ ॥ १०
उपदेशमाला
मासकप्पेण ॥ १॥ पच्छिमरयणीसमए, सीसेहिं तस्स सुमिणए दिट्ठो। पंचसयकलहकलिओ, कोलो वसहीए पविसंतो ॥२॥ विम्हियमणेहिं तेहिं, सुमिणत्थं पुच्छिया तओ सूरी । तेहिं कहियं एही, गुरु कोलो साहुगयसहिओ ॥३॥ अह उग्गयंमि सूरे,
अंगारमर्दविशेषवृत्तौ । सो मग्गहसंगओ रविसुओ(य)व्व । कप्पतरुसंडमंडिय-सहिओ एरंडरुक्खो व्व ॥ ४ ॥ पंचसयसुमुणिजुत्तो, आयरिओ रुद्ददेवना
काऽऽचार्य
कथा । ॥ ३८८॥
मोत्ति । पत्तो साहूहिं कया, उचिया से सव्वपडिवत्ती ॥५॥ अह वत्थव्वीमुणिणो, परिक्खणदा निसिम्मि कोलस्स । गुरुवय-16 णेणं खिविउं, काइयभूमिम्मि अंगारे ।। ६॥ पच्छन्नपएसगया, पलोयमाणा य जाव चिटुंति । पाहुणगसाहुणो, ताव पट्ठिया काइय महीए ॥ ७॥ अंगारक्कमणुप्पन्न-किसिकिसारावसवणओ ते य। मिच्छामिदुक्कडं हा, किमेवमेयंति जंपंता ।। ८॥ अंगारकिसिकिसारव-ठाणेसु लहुं रयंति चिंधाई । गोसे पहिस्सामो, होज किमेयन्ति बुद्धीए ॥ ९॥ विणियत्तति जवेणं, तेसिं गुरू पुण तदाऽऽरवे तुट्ठो। एए वि जिणेहिं अहो, जीवा कहियत्ति जंपतो ॥ १० ॥ खरयरयं अंगारे, महतो काइयामहीए गओ। एसो य वइयरो तेहिं, संसिओ निययसूरिस्स ॥ ११ ॥ तेणावि जंपिय भो तवस्सिणो ! एस स गुरु कोलो। एए वि महामुणिणो सिस्सा एयस्स गयकलहा ॥ १२ ॥ तो पत्थावे पाहुणग-साहुणो विजयसेणसूरीहिं । जह दिगृहेउजुत्तीहिं, बोहिऊणं इमं भणिया ॥ १३ ॥ भो भो महाणुभावा !, एस गुरु तुम्ह निच्छियमभव्वो । जइ मोक्खकंखिणो ता, चएह एवं लहुं चेव ॥ १४ ॥ जम्हा गुरुणो वि हु. उप्पहमि लग्गस्स मूढचित्तस्स । चागो विहिणा जुत्तो, इहरा दोसप्पसंगाओ ॥ १५ ॥ एवं सोच्चा तेहिं, उवायओ उज्झिओ इमो झत्ति । कयउग्गतवविसेसेहि, पाविया देवलच्छीवि ॥ १६ ॥ अंगारमद्दगो पुण, सन्नाणविवज्जियत्तणेण चिरं । कट्ठाणुद्वाणपरो वि, दुक्खभागी भवे जाओ ॥ १७ ॥ सुरलोगाओ चविऊण, ताण सिसाण पंचवि सयाई। जायाई भरहवासे, पट्टणपवरे वसंतउरे ॥ १८ ॥ पुत्तत्ताए जियसत्तु-राइणो रायमाणरूवगुणा । अविकलकलाकलावा, ते पत्ता तारतारुन्नं ॥ १९ ॥ अमरकुमाराssयारा, असरिसपोरिसपयाववित्थारा । जाया लद्धपसिद्धी, वसुंधराधीसपरिसासु ।। २० ।। अह ते हथिणपुर-पत्थिवेण कणयज्झएण आहूया। नियधूयाए अब्भुयरूवाए सयंवरारंभे ।। २१ ॥ पत्तेहि तहिं तेहिं, पसरियउद्दामपामपन्भारो। करहोवक्खरभरिओ, दिट्ठो
म भणिया ॥ १३
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B८८॥