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आर्यमहा
उपदेशमाला-0
॥ ११ ।। अह एगया सुहत्थी, कहेइ सकुडुंबसेट्ठिणो धम्मं । गेहंगणंमि पत्तो, महागिरी विहरमाणो तो ॥ १२ ॥ सहसा सुह
त्थिणा सो, दट्टुं अब्भुदिओ सबहुमाणं । पणमिय पुच्छइ सेट्ठी, भंते ! तुम्हवि किमथि गुरू ॥ १३ ॥ ताहे सुहत्थिसूरी, | विशेषवृत्ती
सिराहए सारगुणगणं तेसि । जिणकप्पनिवियप्पत्त-पत्ततत्तगरसिगत्तं ॥ १४ ॥ भिक्खाए भत्तपाणाणि, चत्तपायाणि तस्स कप्पंति । ।। ३७० ॥ सक्कारपुरकारे, पेक्खंतो परिहरेइ घरं ॥ १५ ॥ इय कयि सुहत्थी ठाविऊण सावयवएसु सेद्विजणं । वसहीए संपत्तो, भोत्तूण
भणेइ सेट्ठी वि ।। १६ ।। घरजणमेवं जइ एइ, एरिसो महासाहू । तो पडिलाभेयव्वो, उज्झियमिक्खाछलं काउं ॥ १७ ॥ सुपवित्तपत्तखेत्तमि, खित्तमपंपि बीयमिव समए । अइबहुफारफलेहिं, फलेइ ता देयमेयस्स ॥ १८॥ किंच-तेने तेन शुधांशुधामधपलं विष्वक् स्वकीयं यशोदौर्भाग्यदूरभाजि तेन ममृदे दारिद्रयमुद्रा द्रुतम् । चक्र केशवशकचक्रिकमलात्तण्ण स्वहस्तोदरे, पात्रत्राकृतमत्र येन विधिना स्वं स्वं नयोपार्जितम् ॥ १९॥ अह अवरवासरे जाव, आगओ अंगणे स गुणरासी। करधरियभूरिभक्खो, घरलोओ ता भणेइ इमं ॥ २०॥ मह जे दिन्ना मड्डाए, लड्डुआ छड्डिया मया तेऽमी। परिवज्जियाई खज्जाई, अन्ज कर्ज न एएहिं ॥ २१॥ पइदिवसं खीरिए खजंतीए इमाए खद्धामि । अलमत्थु मज्झ घयखंडपुन्नघयपुन्नपत्तेण ॥ २२ ॥ इय पेक्खंतोऽपुव्वं, सव्वं चेटुं स चिंतइ किमेयं । उवओगं दब्वाइसु, दितो जाणेइ जमसुद्धं ॥ २३ ॥ अहमिह नाओ नूणं, अनायचरिया तओ न नित्थरिया । इय स नियत्तो तत्तो, पत्तो, य वणे अभत्तट्ठी ।। २४ ॥ पभणइ सुहत्थीमञ्चथमित्यमब्भत्थणं कुणेमि तुहं । भिक्खायरियाए भमंतयस्स किमणेसणं कुणसि ॥ २५ ॥ अब्भुट्ठाणं बहुमाणमायरं तारिसं कुणंतेण । तइ तइया विहियाणेसणा हि तम्भत्तिजणणाओ ॥२६॥ विदिसाए दोवि पत्ता, तत्तो जीवंतसामिणिं पडिमं । अभिवंदिय, अहिणंदिय, अब्भहियं तो सुही जाया ॥२७॥ अह नियजीवियसेसं, स अप्पणो अप्पकम्मुणा मुणिउं । गच्छइ गयग्गपव्वयमज्जमहागिरि महासूरी ॥ २८ ॥ अणुजाणावियसव्वाणवरोहिणि ठाइ थंडिले विउले । पंडियमरणाराहणपडायपावणपवीणमणो || २९ ।। आलोइय खामिय, सव्वमेव कयभत्तपच्चक्खाणखणो । तियसत्तं संपत्तो, मरिऊण महागिरी सुगुरू ॥ ३०॥ कप्पे तीए चेवंतक्किरिया फासिया महागिरिणा। तह संपयं
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॥३७॥