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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ|
चन्द्रगुप्तचाणक्यकथा।
॥३५७॥
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दंसित्तु दूराओ ॥४८॥ अह सो एगेण पहाणतुंगतुरगाधिरूढपुरिसेण । मग्गादवकमित्ता, पुट्ठो चाणक्कओ चंदं ॥४९॥ परिभाविऊण सउणं, भणियं चिद्रइ सरोवरस्संते। एसो स चंदगुत्तो, चिरं पलाणो य चाणको ॥ ५० ॥ आसं तस्स करे अप्पिऊण मोत्तूण मंडलग्गं च । जा मोज्जयाई मेल्लइ, सरस्स मज्झमि पविसेउं ॥५१॥ ता उवविट्ठो तह कहवि, तेण खम्गेण आहओ मम्मे । जाओ जहा परासू , चडाविओ चंदगुत्तो तो ॥ ५२॥ तंमि तुरंगे दोन्नि वि, नट्ठा पंथे गयंमि केवईए । पुटो चंदो चाणक्कएण तुह केरिसं आसि ॥ ५३ ॥ मज्झोवरि चित्तं जंमि, दंसिओ तंमि वेरिणो समए । पडिभणइ चंदगुत्तो ताय ! तया चिंतियं एयं ॥५४॥ जाणइ अज्जो कज्ज, किज्जतं जं जहा हियं होइ। तो नायं चाणकेणमेस मइ विहियवीसासो ।। ५५ ।। नश्यन् वक्ति च चन्द्रगुप्तं यथा वत्स!-अरुणुदयंमि दरीसुं, तमेण संरक्खिऊण अप्पाणं । नियसमए वित्थारो, तहा कओ जो न अन्नस्स ॥५६॥ नाउं छुहाकिलंतं, स चंदगुत्तं बहिं ठवेऊण। कत्थ य गामे तब्भत्त-कारणा पविसिउं लग्गो ।। ५७ ॥ बीहेइ किंतु नंदुस्स, मा ममं कोइ एत्थ जाणिज्जा । दिवो तक्खणजिमिओ, निग्गच्छंतो दिओ कोइ ॥ ५८ ।। तो तस्सुदरं फालिय,
अविणटुं कड्रिढउं दहिकरंबं । जेमाविऊण चंद, दोवि गया अन्नगामंमि ।। ५९ ।। महसाहसिओ एसो, को सक्कइ बंभहचमिय | काउं। संके सकुले चकंपि, कुंठमियचिंतियमणेण ॥ ६० ॥ निसि भिक्खाए भमंतो, चाणक्को थेरिंगेहमणुपत्तो। तत्थ विसाले थाले, विलेविया पुत्तभंडाण ॥ ६१ ॥ परिवेसिया इमीए, तरलेणेक्केण ताण डिंभेण । मज्झे खित्तो हत्थो, दड्ढो रोयइ स जा ताव ॥ ६२ ॥ भणियं तीए चाणक्कमंगलो तंसि पुच्छिया भणइ । पासाणि पढममेत्थं, धिप्पंति तओ पुणो मझं ।। ६३ ॥ लद्धो तेणमुवाओ, पासेसु अ साहिएसु कुसुमपुरं । नो सकिजइ घेत्तुं, तओ गओ हिमगिरि स लहुं ॥ ६४ ॥ पव्वयगपत्थिवो तत्थ, अस्थि काऊण तेण दढमित्तिं । भणइ समयंमि पाडलिपुत्ते नंदं वसे कुणिमो ॥ ६५ ॥ भागेहि दोहि रज्जं, विभयामो दोवि पत्थिया तत्तो। अंतरपुरगामेसुं, ठाविंता अप्पणो आणं ॥ ६६ ।। एगं एगत्थ पुरं, न पडइ कयनिबिडपोरिसाणं पि । तेसिं तो परिवायगलिंगी पविसिय सयं नियइ ॥ ६७ ॥ वत्थूणि जाव दिट्ठा, इंदकुमारीओ माइरूवाओ। तासिं पभावजोगेण, पट्टणं तं न
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