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उपदेशमाला-0 विशेषवृत्ती
चेल्लणाऽपहरणम् ।
॥३४॥
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नाइ पंचहिं सरेहिं । पंचिंदियवावारो, हरिओ रीसाए मयणेण ॥ २९॥ पहसइ जिंभइ खुब्भइ, झिज्जइ खिज्जइ न सज्जए कज्जे । नियनिव्विसेसदासिं, भणइ हला ! मेलसु महेमं ॥ १३० ॥ अभयं भणइ गंतूण, नूण सा हंत चित्तदंसणओ । अहह किमयं तीए, जीए जं संसओ जाओ ॥ ३१ ॥ नणु कहसु को उवाओ, सेणियसंजीवणीए संजोगो। तरुसिहरग्गफला सा, इय एसा अज्ज खुज्जाए ॥ ३२ ॥ नाऊणं तीए कया, मिन्नरहस्सा अवस्समेसत्ति । अभओ भणेइ आणेमि, तमिह सह जाइ जइ तुरियं ॥३३॥ तीए तहत्ति पडिवज्जियंमि एयंमि भणियमभएण । अमुगत्थ सुरंगाए, अमुगनिसापढमपहरंते ॥ ३४ ॥ सयमेव सेणिओ तं, हक्कारिस्सइ न कस्सइ तए वि । कहियव्वं गंतव्वं च, वंचिउं सव्वमेव जणं ॥ ३५ ॥ इय अटुं निग्गंठिय-नगरदुवाराउ दावए दीहं कन्नतेउरकुक्खि, जाव सुरंग कुमारवरो ॥ ३६॥ जाणावइ सेणियमायरेण तो सो अणप्पतोसेण । बत्तीसाए सह वीररहियसहिएहिं सुरहेहिं ॥३७॥ संपत्तो रत्तीए, वेसालिपुरीदुवारदेसंमि । सहसा सुरंगमग्गे, पविसइ केणावि अन्नाओ ॥ ३८ ॥ पावइ दारं अंतेउरंमि जा ताव दिट्ठियादिट्ठा । उवविट्ठा अग्गे सा, सुजेट्ठाकन्ना पहिटुमणा ॥ ३९॥ एहि पिये ! तुह परिरंभलाभलोभेण सेणिओ सोऽहं । संपत्तो आरोहसु, रहंमि जा जाणइ न कोइ ॥ १४० ॥ लहु कहियं तीए चेल्लणाए सा आह एमि अहयंपि । चडियाए चेल्लणाए, निवइसयंगस्स उच्छंगे ॥४१।। मणिमोत्तियमाणिका-लंकारकरंडियं करे काउं । जावाऽऽगच्छामि अहं, खणमेगं ता विलंबेसु ।। ४२ ॥ इय भणिय जा सुजेवा, भवणपकोटे पविट्ठया ताव । चिरयंतीए, मग्गे लग्गो रहियवग्गो ।। ४३ ।। जावा- | SSगया सुजेदा, न सेणियं चिल्लणं च पिक्खेइ । तावाऽऽराडि मेल्लइ, निज्जइ भो ! चेल्लणा धाह ।। ४४ ।। जा चडइ चेडगो चडगरेण धाडीए ताव पणमेउं । वरवीरेणं वीरंगएण सहसत्ति विन्नत्तो ॥ ४५ ॥ देव ! विवक्खं उक्खणिय, तक्खणा चेल्लणा मए चेव । आणेयव्वा सव्वासेणा तुम्भेहिं सह रहउ ॥ ४६ ।। एगरहेणऽणुमन्गे, लग्गो मग्गइ स चेलणा चोरं । संधइ दुद्धरिसो दुद्धरं च विसिहं वहटाए ।। ४७ ।। लग्गेण मग्गणेणं, एगेण वि ताण झत्ति बत्तीसा। रहियाण हया सम जीवियाण वीरंगएण व ॥४८॥ एयाऽवसरे सेणियनरेसरो निग्गओ सुरंगाओ। वीरंगयस्स मगणसंधाणाउ तओ छुट्टो ॥ ४९ ॥ मग्गो य सुरंगाए, रहस्स एग
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॥ ३४०॥