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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ ३३४॥
श्रेणिककोणिककथा ।
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णताणं । उच्चिद्वाणुच्चिद्वेहिमासि सो को वि न विसेसो ॥ ७ ॥ जिमइ जहिच्छं सेणियकुमरो पुण कुक्कुरे करेऊण । अवरकुमराण थालेहिं, वाउलेणाऽऽउलो संतो ॥ ८ ॥ तो चिंतेइ नरिंदो, जोग्गो रजस्स एस चेव सुओ। रिणो रज्जेहिं रिऊण, चेव मित्ते कुणेमाणो ॥ ९॥ परिगणियमोयगाए, नवभकुंभाए घंघसालाए । कुमरा पवेसिऊणं, भणिया रन्ना कयाइ जहा ॥१०॥ इह भुत्तव्वा तुम्भेहिं, मोयगा तह जलं च पेयव्वं । न तुडइ मोयगसंखा, जह विहडइ न घडजओ मुद्दा ॥ ११ ॥ लड्डुयभू(चू )रीनीसंदपाणिएहिं तओ छुहाऽमिया । सुहिया विहिया सब्वे वि, सेणिएणं कुमारा ते ।। १२ । सालाए पलित्ताए, कुमराण निवेण जग्गहे घुठे । केणावि किंपि कड्ढियमासकिसोराइसारधणं ॥ १३ ॥ सेणियकुमरेण पुणो, जयढक्का कड्ढिया पविसिऊणं । पिउणा तुटेण तओ, भणिओ सो भंभसारोत्ति ॥ १४ ॥ स मणोरहाऽणुरुवं, गुणाणुरूवं च तस्स पडिवत्ति । न निवो कुणए कुमारा, मा ! मारिजंति रजेसी ॥ १५ ॥ परिभूयं अप्पाणं तो, पिच्छंतो सिरिं च अन्नाणं । चिंतइ चित्तेणुव्वेगसंगिणा सेणियकुमारो ॥ १६॥ चरणेण चंपिया चडइ, समत्थए एत्थ पंथधूली वि । न समो तीए वि अहं, वसामि जो अज्जवि इहेव ॥ १७ ॥ इह एगागी रायगिहाओ निगमजामिणीए सो। देसंतरेसु साहससहायसहिओ परिभमेइ ॥१८।। अणुगम्मतो पच्छन्न-पत्थिवाइटुसिटुपुसेरहिं । वणकुंजरोव्व पत्तो, कयाइ बिन्नायडे नयरे ॥ १९ ॥ आगंतूणं भद्दस्स, सेट्ठिणो आवणे उवविसेइ । तंमि दिणे से जाओ, अइ. लाभो तप्पभावेण ॥ २० ॥ चिंतइ सेट्ठी दिवो, सुविसिट्टो सुविणओ मए अन्ज । रयणायरोव्व गेहे, महागओ कोइ सप्पुरिसो ॥ २१ ॥ वीवाहिया सुणंदा, मह कन्ना तेण दिप्पइ अणप्पं । सुमिणफलं सो एसो, मन्नेइ य अहियलाभकरो ॥ २२ ॥ तो पभणइ पुरिसोत्तम ! पाहुणया कस्स आगया तुब्भे । भणियमणेणं तुम्हाण, चेव वेसमणतुल्लाण ।। २३ ।। अणुरुवो उल्लावो, इय चिंतंतेण सेट्रिणा तस्स । अइगउरवेण नेऊण, नियगिहे कारियं उचियं ॥ २४ ॥ सइ गउरविजमाणो, भणिओ भद्देण एगया एवं । जइवि न ते पुरिसोत्तम !, वणिकन्ना जुज्जए भज्जा ॥ २५ ॥ मह उवरोहेण तहावि, उव्वहेयब्बिया सुणंदत्ति । दुहिया सुहिया जह होइ, जावज्जीवपि अवियप्पं ॥ २६ ।। 'परपत्थियत्थभारो, परोवयारो परोवरोहरइ । परबसणविणास-विलास-लालसत्तं च
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॥३३४॥