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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
धर्मदाढ्य कामदेवकथा।
बेह ॥ १६ ॥ सम्मत्तमूलबंधोऽणुव्वयखंधो अणंतसुहसंधो। तो सावयधम्मो से, कप्पतरु सामिणा दिन्नो ॥ १७॥ निसियतरवारिधारा-करालमेयं सया स पालेइ । अवरे वि लेइ उग्गे, अभिग्गहे निग्गहेइ मणं ॥ १८॥ नहनीर-रत्तसाली-विदलं हरियालएहिं मुग्गेहिं । गोखीरघयमेलगाणि मोकलं एत्तियं तस्स ॥ १९ ॥ धम्मपडिवत्तिकाले, परिग्गहो आसि जत्तिओ तत्तो। उवरिमऽभिग्गहबंध, करेइ संकोडइ तयंपि ॥ २० ॥ यतः-" कालुष्यं जनयन् जनस्य रचयन् धर्मद्रुमोन्मूलनं, क्लिश्नन्निति कृपाक्षमाकमलिनी.भाम्बुधिं वर्धयन् । मर्यादातटमुद्भजन् शुभमनो हंसप्रवासं दिशन् , किं न क्लेशकरः परिग्रहनदीपूरः प्रवृद्धिं गतः" ॥ २१ ॥ काउं चउहा पोसहमेसो अटुमिचउद्दसिदिणेसु । ठाइ पडिमाइ निसि चच्चरंमि जा उग्गमेइ रवी ॥ २२ ॥ अइनिप्पकपकाओ, वइरागरहीरसारवटुंभो। स नियमनिव्वाहसिरीए, सहइ जो केलिसेलोव्व ।। २३ । सोहम्मसामिनिम्मियपसंसमसहंतओ कयाइ सुरो। कयकाउसग्गमेयं, नियमाओ वालिउं पत्तो ।। २४ ॥ उइंडसुंडदंडेण, डामरं भीमकुंभपब्भारं। अंजणगिरिगरुयं, कुंजरं स विउरुव्विउं भणइ ।। २५ ।। ओसरसु हो(जा)सु दूरं, मह ठाणमिणं वसामि एत्थाहं । तियसो वि सामसारं, भणामि मा घेहि अवहेरिं ।। २६ ।। अन्नह आलाणमहातरुं व भंजेमि झत्ति मज्झाओ। इय दोन्नि तिन्नि चउरो, वाराओ वाहरेइ पुणो ।। २७ ।। जंपेइ न किंपि एवंपि, जंपिओ जाव ताव मुंडाए । उक्खिविउ खे दूराओ, दंतमुसलेहि भिंदेइ ॥ २८ ॥ अइविउलमुज्जलं, जायणं अहियासई महासत्तो । जह पडिओ तह चिट्ठइ, निचिट्ठो कट्टथंभो व्व ॥२९॥ कालविकरालकाओ भुमया दंडोव्व दंडपाणिस्स । होऊण पन्नगो तो तहेव लग्गो स जंपेउं ।। ३०॥ तस्स वि न उत्तरं जाव देइ ता वेढिउं स अंगेण । पीडेइ तदंगं उत्तमंगमगंमि तो डसइ ।। ३१ ।। तेण वि सत्ताओ चलेइ, जा न ता होइ रक्खसो तिक्खो। जालाजालकरालग्गकेसवेसो घडीसीसो ॥ ३२ ॥ अमसिणसुकसिणकुंभक्ख-भल्लभालो करालसंखालो। पेयाहिवसेरिहसंग-भंगिभंगुरभुयभीमो ॥ ३३ ॥ चिविडफुडफोकनासो, परिमंडलपिंगतारतारालो । करभसुपलंबउट्ठो, अइदीहरदंतकुद्दालो ॥ ३४ ॥ अइचवलजालमालाकरालतडितंतु तुल्लजीहालो । निरु नीहरंतरुहिरप्पवाहपंकंकिउटुंभो ॥ ३५ ।। खरखल्लमल्लभल्लो, टप्परखप्परसमाणसवणिल्लो । दीहरकंधरलढिट्ठियअस
॥ २६ ॥ अन्नह आलासरस हो(जा)सु दूरं, महाउडसुडदंडेण, डामर भामभामिनि
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