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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
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अमयपवाहो व्व विहरेइ ॥ ५९ ॥ उज्जेणीओ पत्ता कयाइ जइजुअलिया महामुणिणा । जइ-चेइय-संघाणं, धम्माणाऽऽवाहयं पुट्ठा ॥ ६० ॥ भणियं मुणीहिं चेईहरेसु जच्चाउ हुति अच्चाउ । सुकयासंघो संघो, जए महग्घो य अग्घो य ॥ ६१ ॥ मुणिचंदो वि नरिंदो, जिदिसासणपभावणं कुणइ । किं पुण कुमरो सह सोत्तियस्स पुत्त्रेण पडिकूलो ॥ ६२ ॥ गेहंगणाऽऽगयाणं, साहूणं संजइ उवहासं । ताडइ धाडइ पाडइ, पावो किं किं न सो कुणइ ॥ ६३ ॥ इय सोऊणं स मुणी, चिंतइ भायावि किं पमत्तो मे । असमंजसवावारं, स कूमारं जं उवेक्खेइ ॥ ६४ ॥ अणीए तो अमरिसेण पत्तो महातवस्सी सो । विहियं मुणीहिं साहुस्स, तस्स पाहुन्यं तत्थ ॥ ६५ ॥ गोयरचरियावेलाए, आगयाए भणंति तं मुणिणो । आणेमो समुदाणं, तुम्हाण कए भणइ तो सो ॥ ६६ ॥ अहमत्तलद्धीओ ता दावेह कुलाणि अप्पणिजाणि । सूरीहिं तस्स दिन्नो, तो बीओ खुड्डगो एगो ॥ ६७ ॥ तप्पासे पुच्छिय पञ्चणीयपमुहाणि काणि वि कुलाणि । वालिय बालमुणि तं, दियगेहे तंमि सो पत्तो ॥ ६८ ॥ होऊण दारदेसे, तारेण सरेण धम्मलाभेइ । सहसा पत्ता पभणइ, समयं भज्जा दुजम्मस्स ।। ६९ ।। थेरज्जय ! छन्नपएहिं, एहि मा पोक्करेहि विहरेहि । दुल्ललियकुमारा, अन्नहाउ एत्तो मु (सु)णिस्संति ॥ ७० ॥ भणइ मुणी सविसेसं, ढड्ढरसद्देण उच्च कन्नोहं । वज्जरह किं कुमारेवि, धम्मलाभेमि गंतूण ॥ ७१ ॥ एत्यंतरे कुमारा, पत्ता तं दोवि निंति एगंते । जरजिन्नअज्ज ! जाणेसि, नश्चिरं नच ताव लहुं ॥ ७२ ॥ जेण पसन्ना देमो, तुह भिक्खं खीरि खंडमंडाई । पहसियवयणो पभणइ, तुभेऽवस्सं पसाइस्सं ॥ ७३ ॥ सम्मं नच्चेमि अहं, सम्मं वार्यतयं जइ लहेमि । तेहुत्तं वाएमो वयमेवुल्लवियपाडेहिं ॥ ७४ ॥ भणिओ सागरचंदेण, सुंदरो कोविं अहिणवो पाडो । गलदद्दरेण भणिउँ, ते तं लग्गा न जाणंति || ७५ || थरहरथेर ! पणञ्चसु, वाएमो वयमिओ न किं नियसि । भणिया मुणिणा तो ते, महामुरुक्खा अहो तुभे ॥ ७६ ॥ कोऊहलिणो नचंमि, नेव जाणेह तूरपाढपहं । इय कूडपाडओ रे, नश्चाविस्सह ममं तुभे ॥ ७७ ॥ तो ते कोवविहत्था, हत्थेहिं कयत्थणं खणं काउं । दुक्का भुयजुज्झेणं, झत्ति कुमारा दुरायारा ॥ ७८ ॥ तो तेण तवोनिहिणा, मुक्का अंगाणि टालियटसत्ति । चिट्ठति पलोयंता, चंचापुरिस व्व निचिट्ठा ॥ ७९ ॥ स पुण मुणी करुणाए, पञ्चक्खेऊण
श्रीमेतार्यमुनिसन्धिः ।
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