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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
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वित्थरिय सुत्थियजसो ॥ २८ ॥ रुहिरगंघेण पायाण पत्ता सिवा, पिल्लगेहि अणगेहिं सद्धिं सिवा । खाइ पायाहि सा एगओ तं रिसिं, अन्नओ पेल्लगार्इं पुणो तं निसिं ॥ २९ ॥ पढमजामंमि जा जाणु सो खद्धओ, दुइयजामंमि जा ऊरुगाणग्गओ । तइयजाजा नाहि ता भक्खिओ, पत्तु पंचत्तमेत्थंतरे थिरहिओ ॥ ३० ॥ भावणभावितओ पीडसहंतओ कुप्पइ कासु वि नो उवरि । नव पुन्निहिपुन्नउ खणि उत्पन्नउ नलिणीगुम्मि विमाणवरि ॥ ३१ ॥ विहिओवओगु जा नियइ नाणि, ता नियसरीरु पेक्ख मसाणि । निसि अद्धखद्ध सूया सियालि, कंथारिकुडंगहि अंतरालि ॥ ३२ ॥ कत्थूरीकुंकुम कुसुम कमल संवलियवारि वरसे विमल । आवेविणु निययसरीरज्वरि पुणु तहि जि जाइ नियठावि पवरि ॥ ३३ ॥ जा तरलसुतिक्खकडक्खलक्ख, त्रियसियसिरीससुकुमारदक्ख । थिरथोरथणत्थलवित्थराहिं, तहिं रमइ ताहिं सह अच्छराहिं ॥ ३४ ॥ वरपारियायमंजरिजुएहिं हरियंदणघुसिणविलेवणेहिं । पंचप्पयारउवभोगभोग उवभुंजइ भूरि अरोगसोग ||३५|| इय तासु सुचित्तहि विसयासत्तहि नलिणिगुमिविमाणि तहिं । नंदीसरि जंतहिं महिमकरंतहिं वरिस असंख अइकमहिं ॥ ३६ ॥ इतब्धः - वासभवणि अह नयणविसालहि, जोयहि मग्गु भज्ज सुकुमालहि । जामिणि जामिवि जाव न आवइ, ताव ताहंगणु जोयण धावइ ॥ ३७ ॥ घरअभितरि जोइउ जावहि, दि न हियइ धसक्किउ तावहिं । कहहिं सव्वि सासुयहि रुयंती य, न नियहु नाहु माइ ! जोयति य ॥ ३८ ॥ सत्थवाह सयमेव निरिक्as, घरि बाहिरि आरामि न पेक्खइ । मिलिउ सुमहिलसत्थु ता रोयइ, परियणु सयणु सुयणु सउ सोयइ ।। ३९ ।। सूरिहथि ताव हक्कारिय, सत्यवाहि रोयंत निवारिय । रत्तिवित्त वृत्तंतु सुवृत्तउ, सत्थवाहि तो जंपिउ जुत्तउ ||४०| यमेव विरत लिंगु लियंतउ करिवि लोउ सयमेव सिरि। जइ तुभिहिं दिक्खउ किमजुत्तउ किउ इय गहि किज्जइ काई ॥ ४१ ॥ भणसु सामि ! सो कत्थ अस्थि, वंदामि वीरु जिव मत्तहत्थि । गुरु दिन्नु दिव्वपुव्वोवओगु, परिकहइ किंपि निपजोगु ॥ ४२ ॥ तो सत्थवाहि बहुसत्थसहिय, नवसाहुपायपूयाए चलिय । जोएइ जावति मसाणदेस, गुरुसोगवेगवट्टियकिलेस ॥ ४३ ॥ ता ससुयभसुय सो अद्धखधु, कंथारिकुडंगमज्झि लध्धु । अह रुयइ तारपोक्कारफार, परिवारजुत्तबहुवाहधार
अवन्ति
सुकुमालसन्धिः ।
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