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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ ॥ २५६॥
शालिभद्र
महर्षि सन्धिः ।
अह रायग्गिहि आसि पसिद्धउ, सत्थवाहु गोभद्द समिद्धउ । दाणसीलसोहग्गसमग्गलु, भद्दा भज्जु तासु जस उज्जलु ॥११॥ इय सा गुणसारी पियह पियारी पुण दुक्खिय अच्चंत मणि । जे होइ न चंगउ एक्कुवि अंगउ पुज्जिजति वि देवगणि ॥१२॥ सा सालिखेत्त सुमिणइ कयाइ, पिक्खेवि दुक्खपरपारि जाइ । सुमिणत्थु समत्थइ सत्थवाहु, तुह होसइ पुतु पलंबबाहु ॥१३॥ ते दिवसमास तो जाय तासु, गउ संगमु गब्भि गुणेकवासु । डोहलउ सालिखेत्तोवभोगि, सामाणइ अंगि अरोगसोगि ॥१४॥ अह जाउ बालु वरलग्गि लग्गि, जह सहसकिरणु उदयग्गमग्गि। गोभदि भद्दु पारधु भवणि, जम्मूसवु पुत्तह चित्ति पवणि ॥१५॥ गहियक्खवत्त अइहव उविति, भड-भट्ट-चट्ट जय जय भणंति । अइतारतारु वजंति तूर, दिजंति ची(कूर कप्पूर पूर ॥१६॥ पच्छावि पइदिउ नामु भद्दु, सुमिणाणुसारि तसु. सालिभद्दु । पइवासरु वट्टइ पोढसुक्खु, जिव नंदणकाणणि कप्परुक्खु ॥१७॥ पत्तइ तारुन्नइ तारतरुन्नइ मयणरूवरेहा निघसु। सोहगसमग्गलु सोहइ सो खलु सुरकुमारु महिगउ अवसु ॥१८॥ समविहवइन्भबत्तीसकन्न, परिणाविउ इभि सुवन्नवन्न । सह मुंजइ ताहिं सुभूरिभोग, सुचमक्किय जेहिं समग्गलोग ॥१९।। आराहिवि रम्मु जिणिदधम्मु, कइयावि अलंकिउ कालधम्मु । गोभद्दु विमाणिउ देउ जाउ, नियनाणि नियइ नियअंगजाउ ॥२०॥ पडिबंधबद्ध आवेइ गेहिं, नियसुयह सव्वु पूरइ सिणेहि । सुरनिम्मियनवनवखजपेज, अमिओवम अप्पइ भक्खभोज ॥२१॥ पइवासरु कप्पड नेत्तवट्ट, पडिपट्ट-हीरपट्ट-उयपट्ट । मणिकणयकडयकुंडलकिरीड, निसि ठवइ सालिखट्ट हंसनीड ।।२२।। सुरभोग सुमुंजइ सह पियाहिं, सुरलोइ जेव सुरु अच्छराहिं । महमहइ अगरकप्पूरवासु, रविकरविलग्गहि अंगि तासु ॥२३॥ कइया वि रयणकंबल सुतार, तहिं आणिय वणिजारइहिं सार । बहुलक्खमोल्लसुमहग्य भणिउ, निव सेणिगि ताह न कोवि किणिउ ॥२४॥ राउलु मिल्लेविणु कंबल लेविणु ते विलक्ख निग्गयवणिय । भद्दाघरि आविय ते मणि भाविय भणिय मोल्लि सव्वइ किणिय ॥२५॥ चेल्लणाए निवो तो इमं जंपिउ, किन एगोवि मे कंबलो अप्पिउ । एगजोगं पि मोल्लं न ते पुज्जए, कजसज्जं न जं तेण किं किज्जए ।।२६।। सेणिएणं पुणो सायरं वाणिया, एह मे देह एगोत्ति ते भणिया। भाह निव ! नत्थि एगोवि सव्वे गया, सत्थवाहीए भद्दाए अंगीकया ॥२७||
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