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तीव्रताराधने स्थूलभद्र मुनिकथा।
। उवभुजिजा अहवा। भणिय जाय। इस भागवणाय सयण
भदस्स ।। १३ ।। जो सव्वरससमगं, मणुन्नभोज सयावि भुंजतो। महपासे वि न खुभिओ, नमो नमो थुलभद्दस्स ॥१४॥ उपदेशमाला-6
जो पडुकडक्खविक्खेवतिक्खसरधोरणीहिं विज्झंतो । मह पासे वि न खुभिओ, नमो नमो थूलभद्दस्स ॥ १५ ॥ मज्झवि विशेषवृत्तौ
संसम्गीए, अम्गीए जो तया सुवन्नं व । उच्छलिय बहलतेओ, स थूलभद्दो मुणी जयउ(इ) ॥ १६॥ पुव्वं सव्वं सा तस्स, ॥ २४१॥ | तक्कहंतो कहेइ हरिसेण । तच्चरियावज्जियमाणसो य सो सावगो जाओ ॥ १७॥ कइयाइ थूलभद्दो, पत्तो वंदावणाय सयण
ला गिहे। देसंतरगयदुग्गयदियदइयं भणइ करुणाए ॥ १८॥ एत्थ एरिसं तत्थ, तारिसं पेच्छ केरिसं जायं। इय भणिउं तंमि गए,
पत्तो पुच्छइ पियं विप्पो ॥ १९॥ किं किंपि भाउणा तेण, मज्झ दिन्नं च जंपियं अहवा । भणियं तीए न दिन्नं, पयंपियं जंतु तं कहइ ॥ १२० ॥ चउरेण तेण ताओ, ठाणाओ निहाणमुक्खणेऊण । उव जिज्जइ सहरिसमणेण मुणिणो पमाउयं ॥ २१ ॥ अह बारसवारिसिओ, जाओ कूरो कयाइ दुकालो । सव्वो साहुसमूहो, तओ गओ कत्थई कोइ ॥ २२ ॥ तदुवरमे सो पुणरवि, पाडलिपुत्ते समागओ विहिया । संघेणं सुयविसया चिंता किं कस्स अत्थित्ति ।। २३ ॥ जं जस्स आसि पासे, उद्देसज्झयणगाइ तं सव्वं । संघडि एकारसंगाई तहेव ठवियाई ॥ २४ ॥ परिकम्म सुत्ताई, पुव्वगयं चूलियाणुओगे य । दिदिवाओ इय, पंचहा वि नो अस्थि तत्थ पुणो ॥ २५ ॥ तइया नेवालवसुंधराए किल भद्दबाहवो गुरवो। विहरंति दिद्विवाय, धरंति इय चिंतयंतेण ॥ २६ ॥ संघेण साहुजुयलं, पहियं तस्संतिए पवाएहि । दिट्टिवायं जं संति, साहुणो अस्थिणो एत्थ ॥ २७ ॥ कहियंमि संघकज्जे, पडिभणियं तेण संपइ पयट्टो । साहेउ महपाणं-ज्झाणं पुव्वि च दुक्कालो ॥ २८ ॥ जं आसि पयट्टो तेण, नाहमेयंमि उवरए संते । दाहामि वायणं जं न, जाइ एयंमि सा दाउं ॥ २९॥ आगम्मं तेण संघस्स, साहियं तो पुणो वि संघाडो। तस्संतिए निसटो, जो संघाणं न मन्नेइ ॥ १३०॥ को तस्स होइ दंडो, एयमि भणाविए भणइ भयचं । उग्घाडणंति तेणुत्तमत्थु, तं तुज्झमाह पहू ॥ ३१॥ मा उग्घाडह पेसेह साहुणो, जे जुया सुमेहाए । दिवसेण वायणाओ दाहिस्सं सत्त जा झाणं ॥ ३२॥ एगा भिक्खाओ समागए(या)ण दिवसद्धकालवेलाए । बीया तइया सन्ना वोसग्गे कालवेलाए ॥ ३३ ॥ दिवसंतभाविणीए, चउ
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॥२४१॥