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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
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अच्चतं हयहियओ, जाओ राया समं पुरजणेण । नियमंदिरमणुपत्तो, वइरसरूवं पयासेइ ॥ ६४ ॥ अंतेउरीओ ताहे, विम्हइयमणा निवं भणतेवं । अम्हे वि तस्स रूवं, दठुमीहामहे नाह ! ॥ ६५ ॥ अइतिव्वभत्तिपरवसमणेण रन्नाऽणुमन्निया सव्वा । अंतेउररमणीओ, पत्ताओ वइरसामिपुरो ॥ ६६ ॥ सेट्ठिसुया अइसुसिलिट्ठदंसणा निसुयवइरवुत्तंता । उम्माहिया सुदूरं, कह पेच्छामित्ति चिंतंी ॥ ६७ ॥ विन्नवइ ताय ! नियमा, सुभगाण सिरोमणिस्स वइरस्स । देहि ममं अहवा जीवियरस नीरंजलि मज्झ ॥ ६८ ॥ सव्वालंकारविभूसिया, कया अच्छरव्व सा सकखं । गहिया य अणेगाओ, धणकोडीओ तओ तेण ॥ ६९ ॥ पत्तो वरसमीवे, कहिओ धम्मो सवित्थरो गुरुणा । भणइ जणो सरसोहग्गमग्गलं न उण रूवंपि ॥ २७० ॥ जइ नामरूवलच्छी, हुति एयस्स तो न तिजए वि । असुरो सुरो व विज्जाहरो व इमिणा समो हुंतो ॥ ७१ ॥ भयवं नाऊण सभाए, माणसं तक्खणा विउव्वे | पउमं सहस्सपत्तं, कंचणमयमुज्जलुजोयं ।। ७२ ।। तस्सोवरिं निविट्ठो य, विज्जुपुंजोन्व भासुरं रुवं । निम्मे मयणमय हारिलायन्नपुन्ननिहिं ॥ ७३ ॥ अह भणइ जणो सुमणोरुवं सहावियं इमस्स इमं । इस्थिजणपत्थणिज्जो, मा होमि न दंसियं पढमं ॥ ७४ ॥ भणियं भूवइणा वि य, अहो इमस्सेरिसो अइसओत्ति । ताहे अणगारगुणे, इमेरिसे तस्स पन्नवइ ॥७५॥ तवगुणओं अणगारा, जंबुद्दोवाईए असंखेज्जे । भरिए करिंति वेउब्वियाणमसमाण रूवाण ॥ ७६ ॥ ता तुम्हाणमेत्तियमेत्तेण वि को चमक्किओ चित्ते । एत्थावसरे वंदिय, धणसेट्ठी विन्नवेइ पहुं ॥ ७७ ॥ तं जियवम्महरूवो, एसा वि य सुंदरीण सव्वाणं । मह धूया धुणइ धुवं, सोहग्गमडप्फरमणप्पं ॥ ७८ ॥ ता कुण पाणिग्गहणं, जमुचियकमवत्तिणो महामइणो । तो सो सामी विसए, विसोवमे कहिउमादत्तो ॥ ७९ ॥ कलुणा नराणमेए, भोगा भुयगव्व भीसणाभोगा । महुलग्ग अग्गधारा, करालकरवाल लिहणसमा. ॥ २८० ॥ किंपागाण व पागा, कडुयविवागा इमे मुद्दे महुरा । भोगा मसाणभूमि व्व, सव्वओ भूरिभयहेऊ ॥ ८१ ॥ किं बहुणा भणिएणं, चउगइदुक्खाण कारणं भोगा । ता किर को कल्लाणी, सल्लेसु व तेसु रज्जेज्जा ।। ८२ ।। एईए जइ पओयण मत्थि मह लेउ तो वयं तत्तो । महया विच्छडूडेणं, पव्वज्जा तीए पडिवन्ना || ८३ || भयवं पयाणुसारी, अज्झयणाओ महापरि
वज्रस्वामिचरित्रम् |
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