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लममा ठवेउमालावगे मणे वि समरूवे वि ॥६॥ विम्हयहियया जाया, ते साहु पुवमहिगए वि तओ। विन्नासणत्थमालवगे उपदेशमालायऽणेगे य पुच्छंति ॥ ७॥ जह पुच्छं सो तक्खण-माइक्खइ दक्खयाए अक्खलिओ। तो ते सतोसचित्ता, भणंति जइ कइ
वनस्वामिविशेषवृत्तौ वय दिणाणि ॥ ८॥ तत्थेव गुरू चिटुंति, ता लहुं एस अम्ह सुयखंधो। पावेज समत्ति जं, चिरेण लब्भइ गुरुसगासे ॥९॥
चरित्रम् । ॥ २१२॥ (6 एक्काए पोरिसीए, एसो सारेइ तं तओ तेसि । सो अच्चंतबहुमओ, चिंतारयणाहिओ जाओ ॥ २१० ॥ लहुं हुंति तम्मयाई,
निम्मलरूवाई निम्मलगुणेहिं । सुयणहिययाई जह, रूवगेहि मणिदप्पणतलाई ॥ ११ ॥ वइरगुणे जाणाविय, समागया सूरिणोऽहुणा सेसं । अज्झाविज्जउ एसो त्ति, धरियनियमाणसवियप्पा ॥ १२ ॥ पुच्छंति पायवडिए, साहू सूरिओ सुहेण सज्झाए ।
तुम्हाण तेवि एवं, भणंति सुपसन्नमुहकमला ॥ १३ ॥ एसो च्चिय ता कीरउ, वायणायरिओ तओ गुरू भणइ । एसो होही | | नियमा, मणोरहापूरगो तुन्भं ॥ १४ ॥ तुब्भाहितो मा लहउ, परिभवं छन्नगुणगणो एसो। इय जाणावणहेर्ड, एयस्स वयं गया |
गामं ॥ १५ ॥ “ अप्रकटीकृतशक्तिः, शक्तोऽपि नरस्तिरस्कृतिं लभते । निवसन्नन्तर्दारुणि, लक्जयो वह्निर्नतु ज्वलितः ॥ १६॥" 10 संपइ न एस जोगो वट्टइ सुयवायणा पयाणस्स । जम्हा कन्नाहेडगवसेण गहियं सुयमणेण ।। १७ ॥ उस्सारकप्पजोगो, ता तं IN | करेमि सो य इमो। पढमाए पोरिसीए, जाव इयमहिजिउं तरइ ॥ १८ ॥ अच्चंत मेहावी, तावइयं दिज्जइ न दिणमाणं । एत्थ Ig विहिज्जइ तह चेव, सूरिणा काउमारद्धं ॥ १९॥ बीयाए पोरिसीए, कहेइ अत्थं स जेण दोण्हं पि। कप्पाण समुचिओ काउमेवमेसि दिणा जंति ॥ २२० ॥ " चत्तारि हुंति सीसा, अइजाय-सुजाय-हीणजाइत्ति । तिन्नि कमेणं हीणा, सव्वनिहीणो कुलिं
गालो ॥ २१ ॥ गुरुणो गुणेहिं अहिओ, पढमो बीओ समाणओ तेण । तइओ उ किंचिदूणो, सनामसरिसो चउत्थो उ ॥२२॥" 6 एवं कुडंबियाणं, पुत्ता वि भवंति तत्थ वइरमुणी । अइजाओ सीहगिरिं, पडुच्च जेणं पवयणत्था ॥ २३ ॥ जे केवि संकिया
आसि, तस्स ते पायडीकया तेण । गहिओ दिद्विवाओ, जावइओ आसि नियगुरुणा ॥२४॥ दुरियाई अवहरंता, गामागरनगरपट्टणेसुं ते । विहरंता संपत्ता, नगरं सिरिदसउरं नाम ॥ २५ ।। तइया उज्जेणीए, आयरिया भद्दगुत्तनामाणो। बुड्ढावासेण
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सूरिणा काउमार चत्तारि हुंति
समाणओ तेण, पडुच जेणं १४॥ दुरियाई आमाणो । बुद्ध
॥२१२॥