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जम्बूचरित्रे
वच्छ ! एत्तो, बहुबुल्लेउ न सकेमि ॥ ५७ ॥ भणइ 'स उव्वणजोव्वणकरीए गुडियाए रयणतिलएण । सइ जाइ जराए महा उपदेशमाला-N पहारलेसो वि तरुणीए ॥ ५८ ॥ भणियमिमीए तह तं, करेसु जह तरुणि मज्झयारंमि । मह चेव रूवरेहा, जोइज्जइ नायर
अतिलोभे विशेषवृत्तौ जणेण ॥ ५९॥ गुडियाए तीए तिलओ, तओ कओ कुट्टिणोनिडालंमि । कुमरेण तक्खणेणं, थूला सा रासही जाया
लोहर्गला| ॥ ६६० ॥ कडियालि दाऊणं, मुहंमि चडिऊण तीए पुट्ठीए। पहणतो सट्टेणं, स आगओ रायमगंमि ॥ ६१ ॥ मिलिऊण
गणिकाराउले पा(यउ)उ-लाई सयलाई झत्ति पत्ताई। संभालयंति जा उंडिएण केणइ भुयंगेण ।। ६२॥ अक्का खरिया विहिया, सट्टेहिं
कथा। निसटुमाहणइ चडिओ। अणुजुंजेइ नरिंदो, कित्तियदिवसो भुयंगो सो ।। ६३ ।। केरिसरूवो केत्तियवरिसो य वएण कहइ मागहिया । पहु ! तुम्ह रज्जलाभो, ममेयलाभो य समकालं ॥ ६४ ॥ अइसयसुसरिसरूवो, तुब्भाणं केत्तिएण वि कणिटो ।। तो रन्ना विन्नाओ, महाणुओ सो महाधुत्तो ॥६५॥ निवई भणेइ सयमेव, सिक्खविस्सं असिक्खियं तमहं । जयकुंजराधिरूढो, तओ गओ तत्थ नरनाहो ।। ६६ ॥ दिट्ठो स लोयलक्खेहि, लोलअक्खेहिं सव्वविजंतो । अइथूलतुंदतुंगाए, रासहीए समा| रूढो ॥ ६७ ॥ गंतुं पासे पुच्छइ, पिच्छीसो तं तओ कयपणामो । अविनाम महाधुत्तस्स, सागयं गयसिणेहस्स ॥ ६८ ॥ तुह | वाहणं न सोहइ, रासही कलहकेलिलोलस्स । ता एहि कुंजरे एत्थ, अंगमालिंग अंगेण ॥ ६९॥ संजमिय रायमग्गे, तं कुट्टिणि रासहिं महापावं । पहसंतेणं पहणिज्जमाणियं पउरलोएण ।। ६७० ।। धवलहरे संपत्तो, सह नरनाहेण कुंजरारूढो। अकहिंसु पुच्छिओ सव्वमेव रयणाइवुत्तंतं ॥ ७१ ॥ आगंतूणं पुण पाउलेहिं पुहईसरो स विन्नत्तो। आइक्खइ पञ्चरखा चोरी सा रासही एत्थ ।। ७२ ॥ वररयणपाउयासु, हरियासु तीए सह कणिदुस्स । मुहिया छुट्टा सा अंगनिग्गहो को वि जं न कओ ॥ ७३ ॥ ता संपयंपि मोसस्स, अप्पणा तारिसस्स सव्वस्स । जइ कोइ देइ सई, ता पावइ पुव्वरूवं सा ।। ७४ ।। तह विहिए तिलयं
16॥१७॥ बीयगोलियाए करेइ वरसेणो। साहावियरूवधरा, जाया लोहमाला तत्तो ॥ ७५ ।। ततश्च जातोऽयं प्रवादः-" अतिलोभो न
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