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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
सनत्कुमारचक्रिसन्धिः
पविआ कुमरवासामग्गीए. आए । एत्यंतरे
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८८ ॥
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निरिक्खिइ खोणीपडियं मयं बंधं ॥ ८०॥ केणवि कूरेणिमिणा भाया वावाइउत्ति कयकोवा । विजाए जाव मारेउमुज्जुया सुमरियं ताव ॥ ८१ । नेमित्तियस्स वयणं, भाइय वावायगो वरो होही। सहरिसहियया होऊण, सा वि विवाहमीहेइ ॥ ८२ ॥ तंपि सुनंदाऽणुनाए, नायनिद्वासु निठुरो कुमारो। परिणेइ पणामइ, सा वि भत्तुणो झत्ति पन्नत्तिं ॥ ८३ ॥ ससुरेहिं चंदवेगेण, भाणुवेगेण एगया तणया । सह सन्नाहरहेहिं, पटुविआ कुमरपासंमि ॥ ८४ ॥ हरिचंदचंचुवेगेहिं तेहिं कहियं इमं कुमारस्स । जह वज्जवेगजणओ, जाणियनियपुत्तपंचत्तं ॥ ८५ ॥ नियबलसामग्गीए, आगच्छइ मच्छरेण मणिवेगो । तं पहरे जणएहिं, तेण वयमेत्थ पट्टविया ॥ ८६ ॥ तायावि इयाणिं चेव, इंति पहुपायपज्जुवासाए । एत्यंतरे बलाणं, निसुओ इंताण तूररवो ॥८॥ लहु चेव चंडवेगोय, भाणुवेगो य दोवि रायाणो। कुमरसमीवं पत्ता, झुज्झेउं असणिवेगेण ॥ ८८ ॥ अमरिसवसओ इंतस्स, असणिवेगस्स गयणमग्गेण । बहिरियनहंतरालो निसुओ सेणाए हलबोलो ।। ८९ ॥ कुमरेण गयणमग्गेण, चेव गंतूण संमुहं तस्स । सखयरपरिवारेणं, पारद्धो समरवावारो ॥ ९० ॥ रहसेण चंडवेगो य, भाणुवेगो य असणिवेगेण । सह पहरंता पेल्लित्तु, पडि| पहं पाविया दोवि ॥ ९१ ।। कुमरेण समं अंगंगिसंगारे असणिवेगभूवेण । मुक्कं महोरगत्थं, कुमरो वारेइ गरुडेहिं ॥ ९२ ॥ अग्गेयत्थं वारुणसत्थेणं वित्थरेण पडिहणेइ । निहणेइ तामसत्थं, खणेण खरकिरणसत्थेण ।। ९३ ॥ उक्खयखग्गो एगो, छिन्नो अन्नो छुरीधरो विभुओ। साहिव्व छिन्नसाहो, तओ कओ सो असणिवेगो ॥ ९४ ॥ तणुणा तो दंभोलित्थंभेण निसुंभणे कयारंभो। कुमरेण धावमाणो, कओ कबंधो य समयंधो ॥ ९५ ॥ 'रायसिरी नीसेसा, संकंता सासणं कुमारंमि । अल्लियइ कुमरमेयस्स, खयरवग्गो समग्गो वि ।। ९६ ।। एएहिं चंडवेगाइएहिं, सह एइ तो स वेयड्ढे । निवअसणिवेगगेहे, अन्नेवि ठिया सठाणेसु ॥ ९७ ॥ सुहतिहिमुहुत्तनक्खत्त-जोगलग्गमि करिय समवायं । वित्थारयति खयरा, खेयररायाऽभिसेयं से ॥ ९८ ॥ अह साहिय वेयड्ढो, सुवियड्ढो तत्थ कुणइ चकितं । लद्धावसरेण कयाइ, चंडवेगेण विन्नत्तो ॥ ९९ ॥ पहु ! कहियं मुणिणा अग्गिमालिणा
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