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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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ततः-अरिजयसज्जा पहरणविज्जा विजाहरेण से दिन्ना । कंताहिं ताहिं अहिं, सह निसि अह सुयइ वासगिहे ॥ ६०॥|HI
सनत्कुमारजाव पभाए पडिबोहमेइ पेक्खेइ ताव अप्पाणं । गिरिगुरुगहणे पुहईए पडियमइककरालाए ॥ ६१ ॥ चिंतइ किमिदयालं एयं कंताउ ताउ कहिमः । दिसंति फेरवीओ फेक्कारतीउ पासंमि ।।६२।। सुरवेरिणो भविस्सइ, विलसियमेयं तहा पहरियस्स । भयभूरिभंगुरस्स चक्रिसन्धिः वि, वेराउ छलं नियंतस्स ॥ ६३ ।। वियरइ जाव असंको, गिरिसिहरे सेहरं व धवलहरं । तो पेक्खइ लक्खइ इंदयालमेयपि किंपि भवे ॥ ६४ ॥ रमणीए रुयंतीए, धवलहरोवरि सुणेइ करुणसरं । सत्तमतलं.मे पत्तो, मुणइ विसेसं पलावस्स ॥ ६५ ॥ कुरुकुलगयणंगणमंडणेकससहरसणंकुमार ! तुमं । इह मह भवे न नाहो, जाओ ता परभवे होज्जा ।। ६६ ।। पयडीहोउं दिनासणेण तेणेयमेवमुल्लविया । का सुयणु ! तंसि तं कं, कुमारमीहसि ? दसा किमिमा ? ॥ ६७ ।। वुत्तं तीए सुपुरिस ! संपइ मह दिवसनाह तई दिदै । मणकमलं वियसइ, मउलियंपि भण हेउणा केण ॥ ६८ ।। खिइतिलए अरिमद्दणनिवस्स धूया अहं सुनंदत्ति । तं सुणिय कुरु कुमार, महासि आसा पियं काउं ॥६९।। मायापियरेहिं वि, तस्स चेव दिन्नाहमुदगदाणेण । अकयविवाहच्चिय वजवेगखयरेण अवहरिया ॥ ७० ॥ इह सिहरिसिहरसेहर-सारिच्छे खणविउव्विए तुंगे। पासाए मुक्काई, सोयंती दिवसरयणीसु | ॥ ७१ ॥ एत्थंतरंमि पत्तो, पिक्खइ खयरो तहट्ठियं कुमरं । उक्खवियतिखकोवो, खमंडले खिप्पमुप्पयइ ।। ७२ ।। हाहारवमुहल
मुही धसत्ति धरणीए निवडिया सुमुही। विलबइ सुपुरिसखयका-रिणी कहं ही अहं जाया ॥७३॥ बहुप्पहारनिठुरमुट्ठिपहारेण | तं हणेऊण । अक्खयकाओ कुमारो, पुरो सुनंदाए आयाओ ॥ ७४ ॥ आसासिया निरासा, सर्णकुमारेण सा सवुत्तंतं । कहि
ऊणं परिणीया, गंधव्वविवाहसोहाए ॥ ७५ ॥ चिहुरवरहिं दलदीहवयणु निहणइ ससिपव्वण । नयण मयणभडभल्लि-गंडमंडलमणिदप्पण ॥ ७६ ।। भुयमुणालवेल्लहलपाणि अरविंदसहोदर । घणथणकंचणकलस-ऊरुनवरंभखंभवर ॥ ७७ ॥ तसु रुवरेहसोहमाकल स कइवन्नण किर कवणु । जा कुरुकुमार चक्काहिवइ होसइ निरु रमणीरयणु ॥ ७८ ॥ तह दसणे वि निव्वण उब्बण उजिभ
॥७३॥ माणपिम्मगुणो। सह तीए कीलंतो वसइ विसंको स तत्थेव ॥ ७९ ॥ खणमेत्तेण संझावलित्ति भइणीवि वजवेगस्स । तत्थागया
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