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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
| सनत्कुमारचक्रिसन्धिः
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चउत्थओ थिरत्थामो। अइसुहियाओ होहिंति, तस्स दिनाओ कन्नाओ ॥ २६ ॥ वयमतिहीता तुब्भे, पमाणमेयं जंपिए कुमारेण । पढमं पाणिग्गहणं, विहियं सह खयरकन्नाहिं ॥ २७ ॥ भणियं च भाणुणा अच्चिमालिणा वेरकारणं कहियं । तुह जक्खस्स य संखेवओ तओ सुणसु साहेमि ॥ २८ ॥ कंचणपुरंमि नयरे अहेसि विक्कमजसो त्ति नरनाहो । पंचसयंतेउरतरुणिवल्लहो वम्महो व सयं ॥ २९ ॥ तत्थेव सत्थवाहो, अहेसि नामेण नागदत्तो त्ति । विण्हुसिरी से भजा, रइरभारूवगव्वहरी ॥३०॥ विकमजसेण दळूण, कहवि अंतेउरंमि सा खित्ता । अइगरुयविरहदाहो, गहिलीहूओ स सत्थाहो ॥ ३१ ॥ विण्हुसिरीमोहेण, मूलियाए विकमजसो वसं नीओ। परिहरियावरकज्जो, तं चिय अच्छइ नियच्छंतो ॥ ३२ ॥ ईसा विसाय विसदूमियाहिं, अवराहिं सा विसेण हया । सत्थाहो विव रायावि, सुन्नवुन्नो परुनो सो ॥ ३३ ॥ देइ न देहं दहि, मंतीहि मंतिऊण बीयदिणे । निवचक्खं वंचेऊण, छड़ियं मडयमडवीए ॥ ३४ ॥ निवई तमपेच्छंतो अणिच्छियपाणाऽसणो धुवं मरिही । इय अडवीए नीओ, निएइ मडयस्स तमवत्थं ॥ ३५ ॥ गिद्धेहिं अद्धखद्धा, अंताली हत्थमंछिया अच्छी। रसपिसियपूयकीकस-वसाइ सुलुसुलिर किमिजालं ॥३६ ।। अइदुरहिगंधफुटुंत-घाणघोरागिई महीनाहो । वेरग्गमग्गलग्गो, चिंतेउमिमं समारद्धो ॥ ३७॥ कुललजामज्जाया, जसो य मुका मए कए जस्स । तस्स वि देहस्स दसेयमेरिसी अहह मूढोम्हि ॥ ३८ ॥
कुंभ-कुंद-अरावद-इंदु, इंदीवर-अन्नइ, दिज्जंता उवमाण जाह, तसु अंगह इय गइ ।
गंधसारु घणसारु, अगुरु कत्थूरी कुंकुमु, किं न दिन्नु एयस्सु, अहह पुण गंधु महाऽधम् ।। ३९ ॥ इय कुहियकडेवर कारणिण, किन्न किन्न मई कप्पियउ । बलि किजउ दुम्मइ एह, महु दुक्खय अप्पा अप्पियउ ॥४०॥ तणमिव सव्वं रज्जाइ वज्जिउ सुव्वयायरियपासे । महीनाहो निक्खंतो तवेइ तिव्वं तवोकम्मं ॥४१॥ मरिउं सर्णकुमारे, कप्पे | देवो महिड्ढिओ जाओ। रयणउरे सेविसुओ, जिणधम्मो नाम तत्तो वि ॥ ४२ ॥ सावगधम्म सम्मं, परिपालइ मुणि-जिणिं
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