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उपदेशमाला
प्रसन्नचन्द्रराजर्षिकथा
विशेषवृत्तिः
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| म्मुहेहि, नरनाहनरेहिं सो दिवो ॥ ९७ ॥ धरलग्गएगपाओ उभियभुयदंडचुबियनहम्मो । सिद्धिपुरीए संपढिओ ब्व एएण देहेण
॥ ९८ ॥ तरुणतरतरणिमंडलकरालकिरणालिसंमिलियतारो । तवतेअजिओ जाओ, ससिव्व एसो त्ति दंसिंतो ।। ९९ ॥ भणिय सुमुहेण अहो, आयावइ कोवि एवमइधन्नो। अपवग्गो सम्गो वा, पाणिगओ वस्समेयस्स ॥१०॥ अह दुम्मुहेण भणिय मुणियमिमो सो पसन्नचंदोत्ति । को नाम नाममेयस्स लेइ धिद्धि कयग्धस्स ॥ १॥ अप्पिय सुयस्स सिसुणो विणासियं रजमप्पणो इमिणा । लुटिज्जइ अहुणा तारिसंपि सीमालराईहिं ॥२॥ सालमहासालपिया, पसन्नचंदो स एस पावमई । रज्जाउ मोइजइ, मंतीहिं इमस्स बालसुओ ॥ ३॥ चंपाहिवेण दहिवाहणेण अंगीकयव्व रजसिरी । अंतेउर-पयाओ पलाइउं जाइ कोवि कहि ॥ ४ ॥ सुणिऊण ज्झाणविज्झावणा य वाणिं जहत्थनामस्स । रुदज्झाणं स झियाइ अपणो अणणुरूवमिणं ॥५॥ रे दुरमच्चा ! तह नाम पोसिया तोसिया य दाणेहिं । वह अरिव्व अहुणा, सुसासिया जं तया न कया ॥ ६॥ सीमालमहीवाला ! रे, दहिवाहण! तुहावि चारहडी। इन्हि पि जुज्झसज्जो म्हि जीणसालं लहुं लेमि ॥७॥ अहमत्तदंतिपत्तं, निरवगह पहरमाणपाणीहिं । चित्तेण चेव कूरेण, जुझिरंतं निवो नियइ ॥ ८॥ वजरइ जायतोसो, जयइ जए एस कोइ सुतवस्सी । अहह अहो अइदुस्सहविहाणमायावणं कुणइ ।। ९॥ समवसरणंमि पत्तो, पणमिय परमेसरं निसन्नो सो। पुच्छइ तस्स तवस्सिस्स, तिव्वझाइस्स कत्थ गई ॥ ११० ॥ भणियं पहुणा सत्तममहीए तो सो चमक्किओ चित्ते । जइ दुग्गई इमेण वि, ता सुगई होइ केणेह ॥१२॥ अहवा मए न सम्मं सुयं भविस्सइ पुणोवि पुच्छिस्सं । अवसरमवेक्खमाणो अच्छइ पुच्छइ पुणो सामि ।। १२ ।। पभणइ पहु वि संपइ सुतवस्सी सो करेइ जो कालं । तो सव्वदुविमाणे ता उप्पज्जइ जणियपुन्नोहो ॥१३॥ नरनाहो विम्यमाणमाणसो अह हवइ विसंवाओ। नूणं निसुयं सम्मं न मए इय जाव चिंतेइ ॥ १४ ॥ तावाऽऽह पहूवि मए, भणियं सुणियं च न अन्नहा तए । किं पुण कूरेण मणेण सो तया आसि जुझंतो ॥ १५ ॥ कहिओ पसन्नचंदस्स वइयरो सुमुह-दुम्मुहाणं च । जा माणसेण मारेइ वेरिणो रुद्दझाणजुओ ॥ १६ ॥ हरिणा हरि च करिणा करि च सुहडेण हणइ सुहडं च । जा कयपहरणमोक्खो
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॥५८॥