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कायतुं
अनबनरन (क
सिद्धांतरहस्य ॥३४॥
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दंडक ॥३४॥
सं० सोयना भाराने आकारे. वायुकायर्नु सं० धजा-पताकाने आकारे. वनस्पतिकायन सं० नानाप्रकार,. कषाय चार. संज्ञा चार. लेश्या पृथवीका अप्का० अने वनस्पतिका मां अपर्याप्ता वेलाए चार पहेली अने पर्याप्ता | वेलाए पांचे स्थावरकायमा लेश्या त्रण पहेली. इंद्रिय एक स्पर्शन ( काया )नी. समुद्घात-पृथवीका० अप्का. तेउका. अने वनस्पतिका ने त्रण वेदनी, कषाय ने मरणांतिक. वायुका ने चार एक वैकेय समुद्घातवधी. पांच स्थावर, असंज्ञी छे. वेद एक नपुंसक. पर्याप्ति चार आहार पर्याप्ति, शरीर प० इंद्रिय प० ने श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति. दृष्टि एक मिथ्यात्वनी. दर्शन एक अचक्षुदर्शन. ज्ञान नथी. अज्ञान बे मति अ. श्रुत अ० योगपृथवी का०, अपूका० तेउका. अने वनस्पतिका नेत्रण औदारिक, औदानो मिश्र ने कार्मणकाय योग अने वायुका ने पांच वैक्रेय अने वैनो मिश्र, ए बे वध्या. उपयोग त्रण बे अज्ञान ने एक दर्शन. तेमज आहार| व्याघात आश्रयी जघन्य त्रण दिशानो, मध्यम चार पांच दिशानो अने निर्व्याघात आश्रयी छए दिशानो
आहार ले, ते ओज ने रोम ए बे प्रकारनो ते पण सचित्त, अचित्त ने मिश्र आहार ले. उववाय ते आवीने उपजे पृथवीका, अपका. अने वनस्पतिका मां एक नारकनो दंडक छोडीने त्रेवीश दंडकना उपजे. तेउका० ने वायुका मां पांच स्थावर, त्रण विकलेंद्रिय, तिर्यच पंचेंद्रिय अने मनुष्य; ए दशदंडकना उपजे. स्थिति पृथवीकायिकनी ज० अंतर्मुहूर्तनी अने उ० बावीशहजार वर्षनी. अप्का नी ज० अंत ने उ. सातहजार वर्षनी. तेउकानी ज. अंत ने उ० ऋण अहोरात्रनी. वायुकानी ज• अंत ने उ० ऋणहजार वर्षनी. वनस्पतिका.
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