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सिद्धांत
रहस्य ॥३३॥
निकायदेवनी ज० दशह० वर्षनी ने उ० दोड पल्यनी, तेनी देवीनी ज० दशह० वर्षनी ने उ० पोणा पल्यनी, हवे उत्तरादिशाना असुरकु०नी ज० दशह०नी ने उ० एक सागर झाझेरी. तेनी देवीनी ज दशह० ने उ० साडाचार पल्यनी. तेना नवनिकायना देवनी ज० दशह ने उ० देशेउणा बे पल्यनी. तेनी देवीनी ज० दशह० ने उ० देशेउणा एक पल्यनी. समोहया–अममोहया बे मरण छे. चवण ते चवीने भवनपति, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, मनुष्य अने तिर्यंच ए पांच दंडकमां जाय. गति-आगति ते मनुष्य ने तिर्यंच ए बे गतिमां जाय अने भवन पतिमां एज बे गतिमांथी आवे. प्राण दश होय. इति भवनपतिना दश दंडक समाप्त.
हवे पांच स्थावरना पांच दंडक, तेमां पृथ्वी, पाणी, तेउ अनें वनस्पतिकायिकमां शरीर ऋण औदारिक, तैजस ने कार्मण. वायुकायिक ने शरीर चार ते वैक्रेय वध्युं. अवगाहना प्रथमना चार थावरकायनी ज०ने उ० अंगुलना असंख्यातमा भागनी अने वनस्पतिकायिकनी ज० अंगु० असं० ने उ० एक हजार योजननी झाझरी, कमल प्रमुखनी. संघयण एक छेबहु. संठाण एक हुंड. पांचे स्थावरकायना संठाण जुदा जुदा कहे छे: - पृथवीनुं मंठाण, मसुरनी दाळ अने चंद्रमाने आकारे होय. अप्कायनुं सं० पाणीना परपोटाने आकारे. तेउकायनुं
१ असंख्यात वर्षंवाला मनुष्य ने तिर्यंच पण भवनपतिमां उपजे, तेमज समुच्छिम तिर्यंच उपजे, परंतु समुच्छिम मनुष्य न उपजे. बली सूक्ष्मं पृथ्वी आदि भने साधारण वनस्पतिमां भवनपति न उपजे २ प्रत्येक वनस्पति आश्रयी जाणवी सूक्ष्म वनस्पतिकायिकनी ज० ने उ० अंगुलना असंख्यातमा भागनी अवगाहना होय.
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दंडक ॥३३॥