________________
है
सिद्धांत
दंडक
रहस्य
॥२५॥
॥२५॥
नीलले०, कापोतले०, तेजोले० पदमले०, शुक्ल लेश्या. इंदिय के० इंद्रिय पांच. श्रोत्रंद्रिय, चक्षु इंद्रिय, घ्राणेंद्रिय, रसनेंद्रिय अने स्पर्शनेंद्रिय. समुग्घाए के० समुद्घात सात. वेदनी समुद्घात, कषायम०, मारणांतिकस०, वैक्रेयस०, तैजसस०, आहारकस०, अने केवल समुद्घात. सन्नी के० संज्ञी-असंज्ञी, मन होय ते संज्ञी अने मन नहोय ते असंज्ञी. वेदेय के० वली वेद त्रण, स्त्रीवेद, पुरुष वेद अने नपुंसक वेद. पजत्ती के० पर्याप्ति छ आहार| पर्याप्ति, शरीरप०, इंद्रियप०, श्वासोच्छ्वासप०, भाषाप०, अने मनपर्याप्ति. दिट्टी के दृष्टि त्रण. समकितदृष्टि, मिथ्यात्वदृष्टि,अने मिश्रदृष्टि, दंसण के० दर्शन चार.चक्षुदर्शन अचक्षुद०,अवधिद०,अने केवलदर्शन. नाणेके०, ज्ञानपांच अने त्रण अज्ञान.मतिज्ञान, श्रुतज्ञा०.अवधिज्ञा०, मनःपर्यायज्ञा०,अने केवलज्ञान,मतिअज्ञान,श्रुतअ०, विभंगअज्ञान. जोग के० योगपन्नर, चार मनना, चार वचनना अने सात कायाना. सत्यमनोयोग. असत्यमनोयोग, मिश्रमनोयोग अने व्यवहारमनोयोग.सत्यवचनयोग, असत्यवचनयोग, मिश्रवचनयोग अने व्यवहारवचनयोग. औदारिक, औदा-मिश्र, वैकेय, वैकेयमिश्र, आहारक, आहा०-मिश्र अने कार्मणयोग. उवओगे के उपयोग बार. पांच ज्ञान, त्रण अज्ञान अने चार दर्शन. तहा किमाहारे के० तेमज आहार. द्रव्यथी अनंत प्रदेशी पुद्गलो, क्षेत्रथी असंख्यान प्रदेशावगाढ पुद्गलो, कालथी जयन्य मध्यम अने उत्कृष्ट स्थितिवाला पुद्
मन अने वचन योगना जे चार चार भेद कहेल छे, ते व्यवहारनयथी अने निश्चयनयथी प्रथमगा जे वे वे भेद छे ते जाणवा; एम | पनवणा सूत्रथी जणाय हे. व्यवहार वचनयोगने असत्या मृषा नामथी जणावेल के.
-
--
-