SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धांत रहस्य ॥२४॥ सूत्रनी आ बे गाथा कही तेनो अर्थ कहे छे:- शरीर केतां शरीर पांच ते औदारिक, वैक्रेय, आहारक, तैजस अने कार्मण. उगाहणा केतां अवगाहना ते औदारिक श० नी जघन्य अंगुलमा असंख्यातमा भागनी अने उत्कृष्टि एक हजार योजननी झाझेरी, कमलना डोडानी अपेक्षाए. वैक्रेय श० नी ज० अंगु० असं० अने ऊ० पांचसो धनुष्यनी. उत्तर वैक्रेय श० नी ज० अंगु० संख्यातमा भागनी अने उ० लाख योजननी झाझेरी. आहारक श० नी ज० मुंडा हाथनी अने उ० एक हाथनी. तैजस ने कार्मण श० नी० जे० अगु० असंख्या० अने उ० पोताना शरीर प्रमाणे अथवा चौद राजलोक प्रमाणे जाणवी. संघयण केतां संघयण ( शरीरनी रचना) छ. वज्ररुषभनाराच सं०, रुपभनाराच सं० नाराच सं० अर्द्धनाराच सं० किलिका सं० अने छेवहु संघयण. संठाण, केतां संस्थान ( शरीरना आकार ) छ. समचउरंस संठाण, निग्गोह परिमंडल सं०, सादि सं०, वामन सं०, कुब्ज सं०, अने हुंड संठाण. कसाय के० कषाय चार. क्रोध, मान, माया, अने लोभ तह के० तेमज सन्नाओ के० संज्ञा चार. आहार संज्ञा, भय सं०, मैथुन सं०, अने परिग्रह संज्ञा. लेसा के० लेश्या छ. कृष्ण लेश्या, १ आ गाथा जीवामिगमसूत्रनी टीकामां छे, अमूलरुषिजीवाली प्रतमां मूलमां छे. २ अवगहना शरोरनी अपेक्षाए छे. ३ श्रीदेवीना कमलनी होय. ४ केवल समुद्घातनी अपेक्षा ए. ५ मोहनीय भने वेदनीय कर्मना उदयथी 'संज्ञा' होय छे. ६ योग जन्य लेश्या छे. 'जोग परिणाम लेसा' अन्वयव्यतिरेक वडे योग अने लेश्यानो संबंध छे. योग होय तो लेश्या होय अने योगनो अभाव होय तो लेइयानो अभाव होय लेश्यानो विशेष स्वरूप 'लेश्याना थोकडा' थी जोबुं. दंडक ॥२४॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy