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सिद्धांत
रहस्य ॥ २१५ ॥
वर्णवाळो देखाय छे, तेम देव अने नारकनी लेश्याओ, अन्य लेश्या - द्रव्योना संसर्गथी तदाकार मात्रने भजे छे; परंतु पोताना स्वरुपने छोडती नथी. माटे देव-नारकनी द्रव्य लेश्याओ अवस्थित ( यावत् जीव सुधी ) रहे छे अने अध्यवसायना परावर्त्तनथी छंए लेश्याओ होय छे; तेथी दुष्ट लेश्यावाला नरकना जीवोने तेजो लेश्या दिथी समकितनी प्राप्ति थाय छे. कारण ? समकितनी प्राप्ति शुभ लेश्यामां होय छे अने पूर्व प्रतिपन्न (ममकितपामेल छए लेइयावाला होय छे. मनुष्य अने तिर्यचोनी द्रव्य लेश्याओ, अन्य लेश्या द्रव्योना संसर्गथी स्वरु पनो त्याग करी तद्रुप पण थह जाय छे. जेम श्वेत वस्त्रने रंगमां झबोळवाथी रंगित ( तद्रुप) बनी जाय छे, ते म मनुष्य-तिर्यचोनी द्रव्य ले अंतर्मुहूर्ते अंतर्मुहूर्त बदली जाय छे; अर्थात् मनुष्य अने तिर्यचोनी द्रव्यने भाव लेश्यानुं परावर्तन थाय छे. लेश्याना परिणाम ३ प्रकारे, ९ प्रकारे, २७ प्रकारे, ८१ प्रकारे, २४३ प्रकारे अने बहु प्रकारे पण परिणमे छे. जे लेश्याना परिणाम होय तेना पहेला अने छेल्ला क्षणमां मरण धतुं नथी. छेल्लं अंतमुहूर्त शेष (बाकी) होय त्यारे अथवा प्रथम अंतर्मुहूर्त व्यतीत थयुं होय त्यारे मृत्यु थाय छे. एमां पण देवनारकनुं मरण, अंतर्मुहूर्त शेष लेश्या रहे त्यारे थाप अने मनुष्य अने तिर्यचनो मृत्यु, प्रथम अंतर्मुहूर्त वीत्या बाद थाय. प्रत्येक लेश्याओनी अनंत वर्गणाओ छे अने ते अनंत प्रदेशवाली होय छे, तेनी अवगाहना असं ख्यात प्रदेशोनी होय छे. लेश्याना अध्यवसाय स्थानो असंख्याता होय छे, ते असंख्यात लोकाकाश जेटला
२ कृष्ण लेश्यावाला नारकने तेजो द्रव्यना संसर्गथी कृष्ण लेश्या द्रव्यो अवस्थित छतां तेजो लेश्या, भावधी आकार मात्र होय छे.
लेश्या विचार
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