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४ अंतर्मु० अने उ० हजार-सागर झाझरी. अचक्षुदर्शनी के प्रकार ना छे:-१ अनादि-अनंत अने २ अनादि-सांत. सिद्धांत- अवधि दर्शनीनी ज. एक समय अने उ० १३२ सागर झाझेरी. केवलदर्शनीनी, सादि-अनंतकालनी स्थिति. कायस्थिति रहस्य १२ संयतनी स्थिति, ज. एक समय अने उ० देशे उणी पूर्व कोटीनी. असंयत व्रण प्रकारना छेः-१ अनादि- विचार ॥१९७॥ अनंत, २ अनादि-सांत अने ३ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज. अंतर्मु. अने उ० देशेउणी अर्द्ध ||
पुद्गलपरावर्तनी. संयता संयतनी ज. अंतर्मु. अने उ० देशे उणी पूर्वकोटीनी. नोसंयत नोअसं नो संयता संयतनी मादि-अनंतकालनी. १३ साकारोपयोगी अने अनाकारोपयोगीनी स्थिति, ज. उ. अंतर्मुहर्तनी. १४ | आहारक बे प्रकारना छे-छमस्थ अने केवली. छदमस्थ आहारकनी स्थिति, ज० बेसमयन्यून क्षुल्लकभव | ( २५६ आवलीका) नी अने उ० असंख्याता कालचक्रनी, क्षेत्रथी अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाणनी. | केवली आहारकनी स्थिति, ज. अंतर्मु. अने उ० देशेउणी पूर्वकोटीनी. अनाहारक बे प्रकारना छे:-छदमस्थ | अने केवली. छद्मस्थ अनाहारकनी स्थिति, ज० एक समय अने उ० वे समयनी. केवली अनाहारकना बे प्रकार छः-१ सिद्ध केवली अने २ भवस्थ केवली. सिद्ध केनी स्थिति, सादि-अनंत. भवस्थ के. अनाहारकना बे भेद १ सयोगी केवली अने अयोगी केवली. सयो केवली अनाहारकनी स्थिति, अजघन्य-अनुत्कृष्ट त्रण
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२ श्रण समयनी विग्रहगतिमा बे समय अनाहारकना होय छे, माटे बे समय न्यून कहेल छे. ४-५ समयनी पण विग्रहगति क्वचित होय छे परंतु तेनी अत्र विवक्षा करी नथी. उत्कृष्ट अनंतकाल न थाय, कारण ? असंख्याते काले अवश्य विग्रहगति करे; तेमां अनाहारकपणु प्राप्त थाय.