________________
CAL
सिद्धांतरहस्य ॥१९६॥
ज. अंतर्मु. अने उ. तेवीस सागरोपम अंतर्मु. अधिकनी. नील लेश्यीनी ज. अंतर्मु० अने उ० पल्यना असंख्यातमो भाग अधिक दश सागरनी. कापोत लेश्यीनी ज. अंतर्मु. अने उ. पल्यना असंख्यातमो भाग
कायस्थिति अधिक त्रण सागरनी. तेजो लेश्यीनी ज. अंतर्मु. अने उ. पल्यना असंख्या अधिक वे सागरनी. पद्म |
★ विचार लेश्यीनी ज० अंतर्मु अने उ. अंतर्मु० अधिक दश सागरनी. शुक्ल लेश्यीनी ज. अंतर्मु. अने उ. अंतर्मु. ॥१९६॥ अधिक तेत्रीश सागरनी. अलेश्यीनी स्थिति, सादि-अनंतकालनी.९ सम्यग्दृष्टि बे प्रकारना छे:-१ सादि-अनंत अने २ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज० अंतर्मु. अने उ०६६ सागर-झाझेरी. मिथ्यादृष्टि त्रण प्रकारना छः-१ अनादि अनंत, २ अनादि-सांत अने ३ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज. अंतर्मु० अने उ० देशेउणी अर्द्धपुद्गल-परावर्तनी. मिश्र ( सम्यग्-मिथ्या ) दृष्टिनी ज० उ० अंतमुहर्तनी. १० ज्ञानी |बे प्रकारना छः-१ सादि-अनंत अने २ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज० अंतर्मु. अने उ० ६६४ सागर झाझेरी, मति अने श्रुतज्ञानी नीपण स्थिति एमज जाणवी. अवधिज्ञानीनी ज. एक समय अने उ०६६ सागर झाझरी. मन:-पर्यव ज्ञानीनी ज० एक समयनी अने उ० देशे उणी पूर्व कोटीनी. केवलज्ञानीनी स्थिति, सादि-अनंतकालनी. अज्ञानी अने मति-श्रुतअज्ञानीना त्रण प्रकार छ:-१ अनादि-अनंत, २ अनादि-सांत अने ३ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज. अंतर्मु. अने उ० देशे उणी अर्द्धपुद्गल परावर्तनी. विभंगज्ञानीनी ज० एक समय अने उ० तेत्रीश सागर-पूर्वकोटी-देशे उणी झाझेरी. ११ चक्षुदर्शनीनी स्थिति, ज.