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________________ सिद्धांतरहस्य ॥१०३॥ १४८ सत्तामां ते नामकर्मनी ९३ प्रकृति गणवाधी अने १०३ गणतां १५८ प्रकृति सत्तामां होय. मूल आठ कर्मनी सामान्यथी उत्तर प्रकृति ३१ पण थाय छे-ज्ञानावरणीयनी ५, दर्शनावरणीयनी ९, वेदनीयनी २, मोहनीयनी २ आयुष्यनी ४, नामनी २, गोत्रनी २, अंतरायनी ५, एवं एकत्रीश. हवे १४८ उत्तर प्रकृतिनी स्थिति कहे छेःज्ञनावरणीयनी ५ प्रकृतिनी ज० स्थिति अंतर्मुहूर्तनी, उ० ३० कोडाकोडी सागरोपमनी. दर्शनाव० ४ प्रकृतिनी । ज० अंतमु० ने उ० ३० कोडा०, निद्रापंचकनी ज० स्थिति, एक सागरना ७ भाग करीए सेवा ३ भाग ३ (पल्या असंख्यातमा भागे हीन) अने उ० ३० कोडा०, सातावेदनीयनीय ज० स्थिति अकषायिक ने बे समयनी, सकपाकिने चार मुहर्तनी. उ० १५ कोडा०, असातावेदनी ज० ने उ० स्थिति, निद्रा पंचकनी प्रमाणे जाणवी. समकित मोहनीयनी ज० स्थिति अंतर्गु० ने उ० ६६ सागर झाझेरी. मिथ्यात्वमोहनीयनी ज० स्थिति पल्पना असंख्यातमी भागे न्यून एक सागरोपमनी, उ० ७० कोडाकोडी मा०नी. मिश्रमो०नी ज० ने उ० अंतर्मु०मी. पहला बार कषायनी ज० सातिया चार भाग : अने उ०४० सागरनी. संज्वलनना क्रोधनी ज० २ माननी, माननी १ मासनी, मायानी १ पक्षनी अने लोभनी अंतमु०नी, उ० ४० कोडा० सागरनी, स्त्रीवेदनी ज० स्थिति सातिया दो भाग ३५ पल्यना असंखा० भाग न्यून अने उ०१५ कोडाकोडी सा०नी, पुरुष वेदनी ज० ८ वर्षनी, अहिं १५८ उत्तर प्रकृतिओनी ज० उ० स्थिति श्रीपन्नवणासूत्र ने अनुसारे लखेल है जोके ते लंबाणधी त्यां खाये छेः कर्मग्रंथां संक्षेप शैलीधी सुगम्य लखायेल है. 46% %% %%%% कर्म प्रकृति विचार ॥१०३॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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