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________________ [ 20 ] ( २ ) इसके लिए कवि सदा 'किं' 'का' 'कः' इत्यादि प्रश्न वाचक सर्वनाम के द्वारा 'कैमुत्यन्याय' से उक्त अन्य तथ्य का प्रतीति करता है । ( ३ ) अर्थापत्ति तभी हो सकेगी जब उक्ति में कोई चमत्कार हो, 'पीनो देवदत्तो दिवा न भुङ्क्ते' में अर्थापत्ति अलंकार नहीं है । (४५) अनुमान ( १ ) इसमे अनुमान प्रमाण की ही भाँति कवि किसी साधन के द्वारा साध्य की अनुमिति कराता है। ( २ ) ये दोनों साध्य-साधन चकत्कारिक हों, 'पर्वतोऽयं बह्निमान् धूमात्' में अनुमान अलङ्कार नहीं है । ( ३ ) साधन का प्रयोग कवि सदा तृतीया या पंचमी विभक्ति में, या यतः यस्मात् आदि पर्दों के द्वारा करता है । ( ४ ) न्याय के अनुमान की व्याप्तिप्रणाली की तरह यहाँ भी व्याप्ति तथा लिंगपरामर्श होता है, पर वह तार्किकों के मत से सर्वथा शुद्ध ही हो ऐसा नहीं होता, क्योंकि यह तो कवि-कल्पित होता है । (५) अनुमान में साधन सदा ज्ञापक हेतु होता है, जब कि काव्यलिंग तथा अर्थान्तरन्यास में यह समर्थक हेतु होता है । (४६) तद्गुण - अतद्गुण (१) तद्गुण में ऐसे दो पदार्थों का वर्णन किया जाता है, जो एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । ( २ ) उनके गुण भिन्न-भिन्न होते हैं। गुण रंग या अन्य प्रकार के हो सकते हैं । (३) इनमें एक पदार्थ का गुण अन्य वस्तु के गुण से बलवत्तर होता है । ( ४ ) बलवत्तर गुण वाला पदार्थ प्रकृत या अप्रकृत कोई भी हो सकता है । प्रकृत होने पर कवि का लक्ष्य उसकी उत्कृष्टता बताना है । अप्रकृत होने पर कवि का लक्ष्य अन्य वस्तु के गुण के आरोप से जनित चमत्कारकारी स्थिति का चित्रण करना होता है । (५) जो गुण दूसरी वस्तु के गुण को तिरोहित कर देता है वह बलवत्तर गुण है । ( ६ ) बलवत्तर गुण वाला पदार्थ अपर पदार्थ के गुण को जब तक वह उसके संसर्ग में रहता है। तब तक तिरोहित रखता है, अतद्गुण : यह तद्गुण का विरोधी अलंकार है । इसमें न्यून गुण वाली वस्तु उत्कृष्ट गुण वाली वस्तु के संसर्ग में रहते हुए भी अपने गुण को छोड़कर उसका ग्रहण नहीं करती । सद्गुण-मीलित :- इन दोनों में दो पदार्थों का वर्णन होता है तथा एक पदार्थ अन्य को प्रभावित होता है, साथ ही दोनों में बलवत्तर पदार्थ निर्बल पर हावी हो जाता है, किन्तु ( १ ) तद्गुण में एक वस्तु का गुण ( धर्म ) अपर वस्तु के गुण को तिरोहित करता है, मीलित में वस्तु स्वयं ( धर्मी ही ) अपर वस्तु ( धर्मों) को तिरोहित करती है, (२) तद्गुण में किसी वस्तु गुण को तिरोहित करने वाला अपर वस्तु का गुण सदा विसदृश ( भिन्न ) होता है, मीति में दोनों धर्मी ( पदार्थ ) समान गुण होते हैं ।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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