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________________ [] ( ३ ) यह उक्ति या तो किसी प्रश्न के उत्तर में ( प्रश्नपूर्विका ) हो सकती है, या शुद्ध । ( ४ ) निराकरणीय पदार्थ का या तो कवि स्पष्टतः वर्णन कर निषेध करता है या उसकी केवल व्यंजना भर करता है। इसी आधार पर शाब्दी तथा आर्थी परिसंख्या ये दो भेद होते हैं । इनमें आर्थी परिसंख्या में विशेष चमत्कार होता है । ( ५ ) परिसंख्या रिलष्ट तथा अश्लिष्ट दोनों तरह की होती है, किन्तु श्लेष पर आश्रित अधिक चमत्कारी होती है । (४२) समुच्चय - समाधि समुच्चय : ( १ ) इसमें एक साथ अनेक गुणों या क्रियाओं या गुणक्रियाओं का वर्णन होता है । ( २ ) इनमें परस्पर कार्यकारणभाव हो भी सकता है, नहीं भी । ( ३ ) समुच्चय का एक भेद वह भी है, जहाँ अनेक कारण 'खलेकपोतिकान्याय' से किसी कार्य की सिद्धि करते हैं । इस समुच्चय को 'तत्कर' भी कहा जाता है । समाधि : ( १ ) इसमें कवि किसी कार्य के किये जाने का वर्णन करता है । (२) यह किसी साक्षात् कारण से होने जा रहा है । ( ३ ) इसी बीच कोई अन्य कारण 'काकतालीयन्याय' से अकस्मात् उपस्थित होकर उस कार्य को सुकर बना देता है । ( ४ ) इस प्रकार समाधि में सदा दो कारण होते हैं - एक पहले से ही विद्यमान होता है, एक आगन्तुक | ( ५ ) इस अलंकार का वास्तविक चमत्कार इस अंश में है कि अकस्मात् उपस्थित अन्य कारण की सहायता से वह कार्य सुकर हो जाता है । (४३) प्रत्यनीक ( १ ) इसमें कवि ऐसे दो पदार्थों का वर्णन करता है जो परस्पर विरोधी होते हैं । ( २ ) ऐसा भी हो सकता है कि ये विरोधी पदार्थ परस्पर उपमानोपमेय हो । ( ३ ) इनमें एक पदार्थ बलवत्तर होने के कारण दूसरे पदार्थ को पराजित कर देता है । ( ४ ) पराजित होने वाला पदार्थ किसी तरह अपना बदला चुकाना चाहता है पर वह बलवत्तर पदार्थ का कुछ नहीं बिगाड़ सकने के कारण उससे सम्बद्ध किसी अन्य पदार्थ को परेशान करता है । ( ५ ) यदि उपर्युक्त दोनों पदार्थों में परस्पर उपमानोपमेयत्व होता है तो प्रत्यनीक सादृश्यमूलक होता है, अन्यथा यह सादृश्यमूलक नहीं होता । ६ ) प्रत्यनीक श्लिष्ट तथा अश्लिष्ट दोनों तरह का हो सकता है । इलेष पर आश्रित प्रत्यनीक 4 में विशेष चमत्कार होता है । (४४) अर्थापत्ति १ ) अर्थापत्ति में कवि एक ऐसे तथ्य का वर्णन करता है, जिससे अन्य तथ्य का आक्षेप हो जाता है। यह आक्षेप 'दण्डापूपिकान्याय' से होता है । +
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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