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________________ २२२ कुवलयानन्दः ६८ विषादनालङ्कारः इष्यमाणविरुद्धार्थ संप्राप्तिस्तु विषादनम् । दीपमुद्योजयेद्यावन्निर्वाणस्तावदेव सः ।। १३२ ।। यथा वा रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः । इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार ।। १३२ ।। ६९ उल्लासालङ्कारः एकस्य गुणदोषाभ्यामुल्लासोऽन्यस्य तौ यदि । अपि मां पावयेत् साध्वी स्नात्वेतीच्छति जाङ्गली ॥१३३॥ उठते हैं और उसे नीचे खड़े खड़े ही फूल मिल जाते हैं, इस प्रकार उपाय सिद्धि के लिए यत्न करते समय ही साक्षात् फल ( पुष्प ) की प्राप्ति हो जाती है, अतः यहाँ तृतीयप्रहर्षण है । ६८. विषादन अलङ्कार १३२ - जहाँ अभीप्सित अर्थ से विरुद्ध अर्थ की प्राप्ति हो, वहाँ विषादन अलङ्कार होता है । जैसे ज्योंही दीपक को अधिक तेज किया जा रहा था, त्योंही वह बुझ गया । इसी का दूसरा उदाहरण यह है : कोई भौंरा कमल में बन्द हो गया है । वह रात भर यही सोचता रहा है 'अव रात समाप्त होगी, प्रातः काल होगा, सूर्य उदय होगा, कमलशोभा विकसित होगी' । कमलकलिका में बन्द भौंरा यह सोच ही रहा था कि इसी बीच, बड़े दुःख की बात है, किसी हाथी ने उस कमल के फूल को उखाड़ लिया । यहाँ भौंरा प्रातःकाल में विकसित कमल की शोभा की प्रतीक्षा कर रहा था, ताकि उसका छुटकारा हो तथा वह पुनः कमल के मकरन्द का पान कर सके, पर इसी बीच हाथी का कमल को उखाड़ फेंकना अभीप्सित वस्तु से विरुद्ध वस्तु की प्राप्ति है, अतः यहाँ विषादन अलङ्कार है । ६९. उल्लास अलङ्कार १३३-१३५ - जहाँ किसी अन्य वस्तु के गुण दोष से किसी अन्य वस्तु के गुणदोष का वर्णन किया जाय, वहाँ उल्लास नामक अलङ्कार होता है । ( यह वर्णन चार तरह का होता है :- १. किसी वस्तु के गुण से दूसरी वस्तु का गुण, २. किसी वस्तु के दोष से दूसरी वस्तु का दोष, ३. किसी वस्तु के गुण से दूसरी वस्तु का दोष, ४. किसी वस्तु दोष से दूसरी वस्तु का गुण । इसी के क्रमशः उदाहरण देते हैं ।) के १ - यह पतिव्रता सती स्नान करके मुझे पवित्र कर दे, गङ्गा नदी इस सती से यह इच्छा करती है । (गुण से गुण का उदाहरण )
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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